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________________ ७१४ कासमीर मुख मैडम देवी बारसरि पाल्नु पममेवी पद्मावतिय बक्सार नामि कि देवी कई बीनवउं परिल प्रयास मे पिम मे कवित्व गुण सम्म निवासी गिन राइमा यिोग पयो बारहमास पयाम रायो भगइ विजयप रायमर पाम धीर बामवचारे परिकरि देव न दोष दिनु गामि मया करि गिरनारे। साववि प्रथम का मेहो पावसि पर मैपि विडो खु मोर लाई अबगार बह विड बीज सिवई फवाह कोयल मार क्या भवरवइ विवीड उपाह कोई गाव मैमि निषिवं विशु पर मारि किम गमगड गाए रचना का नामकरण कवि ने राम किया गयषि प्रस्तुत षड़यों के रचना में राम की विशेषताएपरिलक्षित नहीं होती पर कविप्रारम्भिक को मर राम लिने के संकल्प से यह स्पष्ट है कि रचना अवश्य ही बारहमासे की वस्तु के रूप में राम में लिखी गई होगी। पूरी रचना के प्राप्त होने पर संभवतः रचना शिल्प का महत्व स्पष्ट हो गया भारबमा का प्रारम्भ कवि ने पद्मावती, वायरवरी, पनावडी, कौमारी या अविका गादि देवियों को मार दी है। रखना बारहमा वर्णन सामाविक नया सीख होता है। दीरारामन्य रसिला मारामाग मारोगा राय काय का प्रणयन किया है। - बारीगर कति प्रति विवाम *. १५९
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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