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________________ ७०७ -- केशी गौतम सन्धि -- यह कृति अप्रकाशित है तथा रमा की प्रति अभय जैन ग्रन्थालय में सुरक्षित है। प्रस्तुत कृति का समय १५वीं शताब्दी का उत्तराईध है।रचना का वृत्त धार्मिक है। या दर्शन के सिद्धान्तों पर रचनाकार ने प्रकार डाला है।इस कृति में महावीर के विम्य गौतम गणधर और पार्श्वनाथ के सिद्धान्त्रों के अनुगामी श्री वी कुमार का बाद है। दोनों के प्रबों तथा अन्य सिद्धान्डो ग पर ही इनके पारस्परिक संबाद का कारण है। रचना साधारण है तथा प्रारम्भिक वो कृतियों की अपेक्षा इसमें राजस्थानी का प्रभाव तथा राजस्थानी इवें की अधिकता है। दोनों भोर के शिष्य मंडल एक सभा करते है जिसमें केवीकुमार के पूछे प्रश्नों का समाधान मणधर करते है और दोनों में सन्धि हो जाती है। विचारों की गधि में पार्श्वनाथ विधान्तों का महावीर के सिद्धान्तों में परिवार हो जाना है। दोनों परस्पर सहमत हो जाते है और इस प्रकार पार्वनाथ के प्रतादि सिद्धान्त महावीर के सिद्धान्तों से समन्वय कर लेते हैं। उदाहरणार्थ कुछ मतमेव सम्बन्धी प्रश्न इस प्रकार है:I" साधु समुदाय को श्वेव जत्रों की मात्रा महावीर ने दी थी और पार्श्वनाथ में बनी प्रयोग में लेकर बीधी- इसका क्या काम (Vौन कौन से " या बंधन कौन कौन " ( के मारे माग मी जमीन में एक वेळ उगी है और उस मेल में तो बारीकों का होगा सिर मिा बाया उarh-माकेका विनाश। (4को ब हीबासमा न हो? . लाय ही अग्नि है। (0.मी पका का में को । उत्तर - धर्म विधा मी लमान दुवारा बत्र में क्रो (6) मुख्य का स्थान बमति क्या है।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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