SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 661
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६२१ इसी प्रकार वात्सल्य (५३४) (प्रत्युन्न स्क्मणि के मिलन पर) स्क्मणी के पुत्र वियोग पर (१३६, १३८, १३९ ) करुण, नक्षशिस वर्णन रनिवास वर्णन और सज्जा वर्ष में अंशिक रूप में श्रृंगार, प्रद्युम्न का क्रोध में कृष्ण बलराम को ललकारना, उदित वचनों से युद्ध के लिए उत्तेजित करना (४५६-४५७), क्रोध मैं आकर अग्निबाण, जल बाण, वायुवाय आदि छोड़ना (५०१-५१५) आदि स्थलों पर रौद्र का वर्णन हुआ है। इतना सब कुछ होते हुए भी कृति की समाप्ति निर्वेद से हुई है। स्वयं प्रद्युम्न नेमिनाथ के पास जाकर दीक्षा ग्रहण करते है। कृति का पर्यवसान प्रयन का समवसरण में कर दीक्षित होने में होता है: fafe कुवेत, महा भयउ डिडि नेमिश्वर संजमु ल • बाहुरियन गरिका मोग विलास चरित बिलers अगरचंदन बहु परिमलवास, सरसद बोल कुसम सर दास ऐसी रीति कालगत गयउ कुणि र नेमि जिन केवल भट समवसरण त आइ सुदि जनवासी अवर सुर रिडं (६४२-६५०) यादवों के विनाश के वर्धन से प्रद्युम्न संन्याल ले बैठते है: बस दिसार बहुजाव भए करि संजम जिनवर पाठ दीवा लेइ कुमर परदव चिंतावत्यु भयर नारायण (१५६) और नारायण के यह पूने पर कि "कवन बुधि ले उपनी तो आज जिन लैइ पू पर प्रद्युम्न- प्रद्युम्न संसार की नश्वरता पर प्रकाश डालता कुमा कहता है: का का राज मोगु चरवाक विनंतक बस संचा ree माल जिम यह जाड फिरs, स्वर्ग पढाल हमि भवतरक दम तुम सम पुबह जम्मू सोहर आणि चटाउ कम्म प्रकृति वन साधारण है। प्रस्तुत अप्रस्तुत दोनों मों में प्रकृति का स्कूल की कवि नै कुना है। बनमाया काव्य होने से उसका मन भी इसमें कम ही स्वा है ऐसा लगता है। मकार तथा नरिमननात्मक रूप में ही प्रकृति चित्रण मिलता है।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy