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________________ ६१८ कुमार की उत्पत्ति तथा पूर्व भव वर्णन और प्रद्युम्न का दीक्षा लेना पी कवि की अपनी ही मौलिक तथा काल्पनिक देन है। अंतिम तथा नवीन भात कवि की ली गत विशेषता है। वर्णन पद्धति तथा मर्ग की सूचना अपने ही प्रकार से देता है। स्तुति मंड के बाद कवि दूसरे पेड के परिवर्तन की सूचना इस प्रकार देता है: १) तुति खेड। (२) निणसासण माहि कहिय भार हरिसुव चरिड करइ साधारपद) (1) काल संवर घर,इदिश कराड,माहुरि क्या वारिका पाय(पद ) (४) पाबमास दिन वरिसगवाय, बाहुरि था वीर पहंजाइ (१५५) (५) बहुत बरत बरस्यो मिली, पाउ वियाग सुवारिका बली (२८) (0 हर वात बचे इ रही,बाहुरि कथा कपिमी पह मई (6) (0) इ अवस बातर पर पूर्व विदेश जाइ मवर (1) C. कुंडलपुर सो राग कराइ बाहुरि क्या इवारिका गाइ (५९) वस्तुतः इन वनों में कवि ने पर्याप्त मौलिकता रखी है। स्वयं कवि समाने प्रद्युम्न की क्या को सरस क्या कहा है। परवेयर बागवली राम की भाति प्रदूराम चरित मी वीर रस का काब्य है। बीर रस अंगी भाव और अंग पाव में है। बीर सके अइप वर्णन कवि के काव्य कौषल के प्रतीक । श्रीन धिपाल का समावि हरण के अवसर पर अपन, महान और सिंह रथ का अध कासंबर और प्रदूपन्न सुध वा श्रीमान महिम पश्च मनी वर्षन उत्कृष्ट शिपाल कीमारियों देरिया या रामा लिइ पिली वरि चोरी हरीला मा कोपि मोतिया नरेश परियपकास देमि और का मन को पिर भीम का ये निसावा पार
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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