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________________ ५६९ नारि-भरिया राई सघला देस चंचल चमकई सवे सुबे ठामिठामि जइ माडिसि प्रेम, जाने दिवसि न देकडे मु आमे छोह भीति जावतरी, बेटी धन भोजनि बागरी गार त्रैह असतीन नेड, दैव देखाउइ पहिला ले माड बोलावइ पिनारउ मर्म प पूरड छइ गणिका धर्म वे जे आमइ पहन ई मिलया, रंक राव जिभते सति भन्था म करि अजाणि स्त्री वीमास स्त्री कहीइ दारी विक पास दिवसा दिसइ ए सीबली पुष ताप पिसिइ जिम सीयली मउ कि माणि हुं न कह स्वामी, बीया वार तुम्हारइ नाभि रानी की इस सिखाग्न पर भी परमहंस न माने। माया ने उन्हें नष्ट कर दिया, और राजा की मन अमात्य से रान पहिचान हुई। धन का कधि ने बड़ा ही चित्रात्मक वर्णन किया है जो विविध दृष्टालों और उदाहरणों से किया है। मन रहिइ दीघउ तर व्यापार, आपणच उतारित भार मनम हि संउ भईल भूलि, राज काज विणिकीधा लि चंचल बहुदिसि सपट फिरड, बीड कोहि नहीई करइ *त्रिम पूती है विसि धाड, मास विडी ने बाइ मुहि मीठळ मा विणल चीडि, मावासि नित माडा प्रीति আনতে মই জীী কাহী বং বালতি খন্থ चडित बींचायत बरडा हावि चूडर मिलि भारि माथि वेशानर नइ बार विवाह विवर मी कि विरलाल पुल मानिउ रानी बलई पबई मेरर उ सफलइ -(पद १९-३२) मन की रानी Altra मोर ने अविद्यानगरी की स्थापना कीवि ने असी अविद्या नगरी का पूरा वर्णन यिा है। वर्षन की मालकारिक्ता और विवात्मक्या दांनी है। जिसमें कवि ने अपने दार्शनिक विश्लेबल का प्रतीकात्मक परिवा दिया। 1- त्रिभुवन दीपक प्रबन्धः श्री गोपी पदका - -
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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