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________________ ११५ परिमल के लिअ मातीय जातीय जिम विहसति महूयर तिमतिम रुणभुग संगणकार कर ति वनि सेवत्रीय बेडल बेडलाई बहुमान वउलसिरि वनि पेलाइ मल्हइ मानिनी मान बालउ सुरभि सुआलउ, आलठ मवण नरिवं पाडल परिमल विकसिय, विसीय नय मुचकंद जिम जिम वा डिमि पाचइ माचइ तिम रितुराउ रायपि हालि लहलहतीय, बहतीय फल समवाउ फल भरि भरिय बीउरीय, मउरीय मंजरी चंग नारिंगी फल अति नमतीय, समतीय पनि हि सुरंग कुसुमतणइ परि सोहइ मोहइ मनजंबीर कुबलय दलबहु विकसइ निवई वनि कणवीर कमल सरोवर वासइ वासइ हंसगंभीरु मयणराय पहराउत राउत किर अति धीरू फलवल पारि मनोहर मोह रचइ सहकार मंजरी पउरबहकर टहवा कोहलि सार (८-२०TToday- २५-१६) वर्णन की प्रासादात्मकता स्पष्ट है कवि ने वैभवगिर की बसन्त श्री का वर्णन खूब डूबकर दिया है। कान की प्रत्येक पंक्ति में बाहर बमक है मापा सरत हिन्दी है तथा बत्सम अब प्रधान है। वसंत का वर्णन फागु को उल्लास प्रधान बना देता है। कवि ने इस बयंत वर्णन के रूप में प्रकारान्तर से चंबू स्वामी के जीवन के मौवन की मुना का सुन्दर बम विा है। बरी कमसि वर्णन, अपवर्णन और श्रृंगार सज्जा की काव्यात्मकता का प्रश्न है कवि ने अपनी पूर्व सफलता दिखाई है। सरल भाषा में इतना मधुर वर्णन भाविकालीन हिन्दी साहित्य में बिरले ही देखने को मिलते हैं। बबू कुमार को अपने दीवा के निश्चम से हटाने के लिए आठ श्रेष्ठ कन्याओं
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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