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________________ ३२७ संवत् परब नवा वरिसिई रितु वसंत जन पहनइ दिवसिई मन रंगिडि म विशाल। फाग बंधी ये गुरु विनती पाव भगति भोलिम संजती कीधी रस बरसाल।।' इससे यह एक बात और भी स्पष्ट होती है कि कबि ने यह फागु काव्य लिखा भी वसंत रितु मैं। अतः वर्णन में वजन्य वसंत का मधुर चित्रप हो सकता है। इन का काव्यों के अतिरिक्त और भी कई ग जो खेलने और गाने के लिए रचे गए थे, श्री आरचन्द माहटा के संग्रह में विद्यमान है। 'व्या अनेक जैसलमेर के जैन मंडार में है। फागु काव्यों की यह प्रवृत्ति हमें १६वीं 10वीं शताब्दी तक बराबर मिलता है। बसन्त विलास के सम्पादक ने फागु के वातावरण का बड़े ही मधुर पदों में चित्र सींचा है, जिनसे कई बाते स्पष्ट होती है।' निम्कयतः उक्त धारों से कागु के शिल्प विधान के बत्वों का विवेचन यों किया जा सकता है. (क) फागु बसन्त का काम है। (ख) या संगीत प्रधान होता है। (1) बा क्रीडा से सम्बन्धित है। रमेका सबसे कम की या की ओर ध्यान पाना है। १-देड- न रेविकारिक गूकारब-श्री पुनि विमविका-देवरत्न पूरि काग पृ.१५४०५८ २. अमन चैन प्रधानमवीगमेर में संग्रही-जिमकद मूरि काम,रावणि पार्वनाथ फाय, जीरापी पाश्र्वभाष कामोत्तमच पानावकामादि अमेकका है। 1. देवि भूमि - प्रा. ग. गह-श्री बला . प .
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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