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________________ २८० नहीं प्रतीत होता। वस्तुतः कृति दोनों ही विधाओं की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। संद के क्षेत्र में भी रेवंतगिरि राम का मौलिक योग है। चारों महबकों में कमरः २०, .., ", और २० पद है। प्रथम बड़बक के बीजों छद दोहे छंद में वर्षिस हैं। दोहा अपच और हिन्दी का लाडला छंद है।कवि ने उसे बड़ी ही संभार से निभाया है।" दिवतीय पत्रक में एक प्रकार का मित्र है, जिनमें हली दो पक्तियों का दानों के आधार पर ठीक नहीं बैठता और भेक बार पत्तियों में लगा. छंद है जो २० भाषाओं का होता है।' नवीय कड़वक का द रोला' है। यह छंद १६ कड़ियों का है। ST• पायापी ने उसे ११ पक्तियों में विभक्त किया है। रोला द मी अपज परम्परा का प्रमुख पद है। चतुर्थ कातक की सबसे महत्वपूर्ण बात कि यह पूरा कड़क की सोरठा छंद में लिखा गया है। इस छंद में वर्णिक वर्ष गीत को पीवात्मक बनाता है और इसे हटा लेने पर सोरठा की मात्राएं बराबर ठीक बैठती है। कवि का वर्णन बातुर्य इसी में है। प्रल रास की रममा का बाम गामाविक एवं धार्मिक प्रवरियों को प्रकार में बील निब का महत्व और परिज नामको बावरी भी बहावा स्पष्ट करना बीन मिनाम में मा राससमाभ्यास देखा है। इस कृतित्कालीन वैन सानो बाहित्यिक पति और पाकि प्रकृति पर माय मा। प्रय सीमा पा , प्रायलवा और देव की बापी की मा प्रसाद और मथुरा विकारात्मक प्रवृत्ति तथा पास 1- परमेशर शिविर मय जोगिमामि राम रेवगिरि अविक विकि मिरि ग. बाबानी - पदकड़वक मध मिस इनामब समय बना भामा वित
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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