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________________ २७९ उपमा रुपक- (४) जिमि जिमि बडइ तडि कडिणि गिरनारह व उत्प्रेक्षा तिमि उडई जण भवन संसारह (५) जाड कुंद विहसतो जं कुलमिति संकुल दी दस दिसि दिवसो किरि तारा मंडल (६) जत्थ सिरि नेमि जिणु अच्छरा अकरा असुर तर उरग किंनरय-विज्जाहरा are मणि किरण पिंजरिय गिरि सेहरा उल्लेख, वर्णन, क्रम तथा स्वाभावोक्ति (७) अइरावन मयराय पाय मुद्दा सम टाकउ दि गर्वदम कुंड विमल निर्भर सम लेकि (८) गयण गंग जं सवल वित्थ भवयारु भणिज्जइ uratford as अंक इक्स जल बंजलि बिज्ज (९) गगन प माहि (१) जिन भापु पब्ध माहि जिन मेरु गिरि त्रिहु म तेम वहाणु विथ मोहि रेवंत गिरि (e) नथण सलव मेमि जि १ ras ष" प्रयोग कितना उत्कृष्ट है। और अब में कवि ने प्रकृति के उपादानों द्वारा नेमिनाथ का अभिषेक कराया 97 मेमिनाथ के रूप न करने में कवि के काव्य का परिमिता है। वन से एक दम रति है ता स्वाभाविक मान निष्यन्न हुआ उसको का त्योंवों का है। मीवर (मी में बमर इति वार्डवर सिरि वरीय * बंदि विज्ञान व विवि narrat विवानों ने प्रतिपाटन मंडार में उपलब्ध होने से इसे प्राचीन गुजराती के विकास की की बढ़ाया है। पर वह भी स्पष्ट है कि प्राचीन गुजराती का ही प्राचीन राजस्थानी का है। अतः इस बात का कोई स्वयं मह १. गिरि-रायः श्रीमान० १० वढी ०६ प १८-१० ३० बी विजय कवक। ०६ प
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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