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________________ २३६ ३- प्रवज्या या दीक्षामूलक, जैब स्वामी गौतम स्वामी और स्थूलिभद्र राम ४- उत्सव वचैव वीरता मूलक भरतेश्वर बाहुबली रास ५० छेद प्रधान रास- भरतेश्वर बाहुबली रास ६० कथा बधान- रामायण महाभारत पर (मंत्र पाडव चरित रा) ७- तीर्थों पर व तीर्थ यात्राओं पर रेवतगिरि रास तथा जब रास, संप्तक्षेत्रीय ज ८. संघ वर्णन समरा राम ९. संकीर्तन जन्य तथा सैद्धान्तिक-सोलह कारण राम्र १०० ऐतिहासिक रास पेथड रास, समरारास इस प्रकार चरित्रों के गुणों का वर्णन करने, उनके दोषों को हटाने यात्रा वर्णन करने, कथा निर्माण करने, मंदिरों का जीवादकार करने, दीवा उत्सव हेतु जय घोषणार्थ आदि के लिए ही इन रास ग्रन्थों की रचना की जाती थी। इसके अतिरिक्त वे भौगोलिक सामाजिक राजनैतिक तथा वरित मलक होते थे। जैन राम्रा साहित्य जितना ही चरित मूलक होते थे। उतना ही ऐतिहासिक भी होता था। इस प्रकार कालान्तर में रात ग्रन्थों के विषय में व्यापकता आ गई और विषयों की सीमा में कोई बंधन नहीं गया। अतः इन जैन साधकों ने लोक साहित्यपरक अधीत् जन भाषा में और शास्त्रीय भाषा दोनों में राम रचनाएं की। धर्म की दृष्टि से..... वैष्णव राव परम्परा में वैभव जैन इन दोनों धर्मों ने बड़ा योग दिया है। कृष्ण भक्ति बाबा के मोड में गोषियों ने राम को बरम से प्रसिद्ध है। इनमें श्रृंगारपरक पक्तिपरक पर पहुंचाया और ब्रज के और कोमल सभी प्रकार के मिले हैं। जैन धर्म ने पी विशाल संस्था में रहा है। अनेक बीरानी जैन मुनियों व पर भी राहों की क्रीड़ा होती थी। स्वी से खेल के और अपनी राम कविवर कयास ग्रहण विधि विवाद होता था और इन जैन विकाल के राखों को सुरक्षित राजपुत्रों के दीक्षामहन करने के अवसर और पुरुष इन राम्रों को बड़ी श्रधा अभिनय व संगीत में वो कर साकार ही नहीं करते काकी के साथ रातों में से अनेकों का उद्दे
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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