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________________ २२३ "हरिवंश पुराण और विष्णु पुराण में भी रास" शब्द की ओर कुछ संकेत मिल जाता है। धनंजय ने अपने दक्ष स्पक मैं रास पर प्रकाश डाला है। महाराज भोज के सरस्वती कंठाभरण और अंगार प्रकाश में भी रास संज्ञा का उल्लेख मिलता है। इस उक्त विवेचन में हल्लीसक शब्द विशेष दृष्टव्य है। हल्लीसक शब्द के साथ मास के नाटक और पुराण साहित्य में गोप गोपिकाओं का साथ होना और क्रीड़ा करना तो स्पष्ट होता है पर अन्य संगीतात्मकता अथवा उसके अन्य किसी free जन्य वैशिष्टय का उल्लेख नहीं मिलता। अतः यह लगता है कि इन ग्रन्थकारों के समय रास क्रिया शारीरिक अवयवों से सम्बन्धित जन मुत्य याक्रीड़ा मात्र थी । वस्तुतः उस समय राम का सीधा सम्बन्ध पुरातन मुल्य मात्र से रहा होगा। संभावना है कि आदिम नृत्य भी इसी रास का एक रूप रहा होगा यह भी संभव है कि संगीत के तत्कालीन शस्त्रीय नियमों के विधान का अभाव ही इसका मूल कारण रहा हो। जो भी हो, यह स्पष्ट कहा जा सकता है कि उस काल में यह जम नृत्य या गम्य नृत्य अथवा लोक नृत्य विशेष के रूप में प्रचलित रहा होगा । एक बालोचक ने इसी सम्भावना पर रास शब्द का अर्थ बोर से चिल्लाना स्पष्ट कर उसे जंगली या भाम पुरुषों की शारीरिक क्रिया या बम्ब नृत्य बताया है। settes शब्द की व्याख्या व व्यवकृति अनेक संस्कृत के विद्वानों ने की है। राम गौतम, क्रीड़ा व संगीत का समय बिताने वाले अनेक विद्रवानों ने १- देवि हरिवंश पुरानः विष्णु पर्व बध्याय १०- (1) पर्व कृष्ण गोपीना वारकृतः । (काक्री पश्य ती बहुभिः स्वीमि : क्रीम सैव रास क्रीड़ा। २. विवेचन में विमान टीमकार ने बाल उड़द का अर्थ संभवतः रास किया है विष्णु -६० उहाहरू(1) ररास च गोष्टी मिल्दार हरियो हरि गोविना राम मन्डल्यू दावा प्र० १४९०४४ में श्री कंकड़ की यह उक्ति र (RAS) * विमा It is not to be derived from (RAS), but from (Raan) a reet which means to cry alone, which may refer to be very prinitive form of this dance when the propertion of masie à artistic movements may not have been still realistic and when it must have been practised as wild dance."
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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