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________________ २०० शिला लेख का उल्लेख डा. हजारी प्रसाद नी दिववेदी और श्री हरिवंश को ने अपने प्रन्धों में गिा है। लेखक को यह शिला लेख हा• मोतीचन्द्र संग्रहाध्यया प्रिंस आफ वेल्स बम्बई के समय से प्राप्त हुआ।वदर्थ लेखक उनका हार्दिक आभार प्रदर्शन करता है। शिलालेख के दोनों कोने टे हुए है पाठ एक दम कटफ्ट गया है तथा बीच बीच में से भी पस्बिया प्रष्ट हो गई है।फोटो प्रति (टेम्पे) हे या बात हुना है कि यह रचना बहुत काव्यात्मक और पर्याप्त महत्व की है। रना का सम्यान डा. हरिकलभ पायाणी कर रहे हैं या डामाता प्रसाद ने भी इसका सम्पादन अपने ही प्रकार से किया है, जो शीघ्र ही विद्वानों के सामने दिखा। जहा तक इस रचना की काव्यात्मकता का प्रश्न है, लेखक के उपमान मौलिक है। श्रृंगारिक अंश बड़े मधुर और मौकिक उपमाओं के दृश्य प्रस्तुत करते है।वर्णनकार ने उपमानों और उत्प्रेक्षाओं की माला पिरोवी है। का वर्णन राउत नाम नाविका के सम्बन्ध में है। यह भी संभव हो सकता है कि राम नाम कमि का पी रहा हो परन्तु कवि के रूप यह नाम अधिक सार्थक नहीं प्रतीत होता और रानाभ नायिका के रूप में ही अधिक संगत बैठता है। कविने गम कास्य के रूप में ही पूरे गम को प्रस्तुत किया है। आदिकासीन इम रमाओं में गद्यात्मक चिनीकी रचनाएं उपयोगी ,रकको देखने पर यह स्पष्ट हो जाता किमान वन करने कीमतों परम्परा सी थी। बाहरणार्थ:वरत्नाकर जैसी रमाबोंगयात्मक कान्त गहब को देखा का पता है। मिदिम मा शकिगम के महात्मा समयावधि गितमी भी कृतिका मिकी में मिलती है हो कि मही" - हिदी मियी निका९४८ ई.पू. २२;डा. हमारी प्रसाद दिवेदी अपरामित्व, ग.रिका कोण, पु.५न् १९५६ -समाउ धनिया: मायामा १-पाखरप्रसाराष्ट-4मकासका HिIावाश्या
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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