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________________ अद्यावधि गय की जो वीं शताब्दी में रमाएं मिली है, उनका गढ्य काव्य की दृष्टि से एक दम साधारण है परन्तु राउल नायिका के नमशिख का वर्णन करने बालेइस शिला लेख का गह्य काव्यात्मक दृष्टि से बहुत ही सम्पन्न है। मइय की परम्परा के कलात्मक पक्ष का श्री गणेश इसी मइयां माना जा सकता है। यह गया वयात कलात्मक है। शिला लेख में या गइय भाग पड्व भाग में मद्यपि कम है परन्तु जितना पी है वह बहुत ही पुष्ट और सशक्त है। आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्यमें गम काव्य का उन्मेष करने वाली रचना की चन्द्र परित का वर्णन प्रस्तुत ग्रन्थ के बैन गल्य परम्पराएं मामक ९ववं बध्याय में किया बागा। मन काव्य का प्रारम्भ की रचना से हुआ है।परन्तु १०वीं शताब्दी के इस अजैन शिला लेख के गइय का परिशीलन करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह गद्य १५वीं बाबूदी में गड्य काव्य की परम्परा का श्री गपेश करने वाली रचना वी भद्रगति भी लगभग ४०० वर्ष प्राचीन क्या काव्यात्मक है। शिला लेख का मन कलात्मक तथा तुकान्त है। गक्ष्म की भाषा में मालवी शब्दों की अधिकता है। मइय काय की परम्परा का उत्कर्ष बीज रूप में इस शिला लेख में मिल जाता है। इस शिला लेख का गद्दय ज्योतिरीश्वर के वर्षरत्नाकर के गहब की भाति सुन्दर प्रवाहपूर्व और नुवाम् । पारा मय काव्यात्मक तथा पास की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इस कृति का वर्ष विगारमा मासिका गोपाल वर्षन करना मर है। मनः यह रचना अजैन केक की जत्यधिक मार और प्रति का सामोपाय वर्णन कप नादर नर है, क्याला ले वर्ष की जैन परम्पराओं का पधाधियों मपी परिचय ही नहीं मिला। सः इन्हीं समामा आधार पर नाराबा वा सकता है। बबी भूमि में गाय काव्य के रूपमें उपलब्ध होने वाली रमना का प्रश्न मिशिलालेख का गड्य बहुख काव्यात्मक है। इस
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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