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________________ कवि रचना की फलति के साथ उसकी समाप्ति इस प्रकार करता है: जे फल ई तप कीचइ सदा, जेफल हुइ नि नरबदा जे फल सत्य वचन प्रमाण, जे कल हुई शामलीड पुराण जे फल पामा तपसी सवे, जे फल बाद छोड़ये, जे फल पाइ कीचड़ यागि, ये का प्रेटयां हुई प्रियागि ने फल पाम गंगा वारि, वे फल इ मेटि दारि के फल हुई विद्या उदरी जे फल भेटया गोदावरी वे फल नारायण दीठ नेत्रि, जे ई दानि कुरुषेत्रि ये फल पाइसाहसि सदी में फल नासा गोमती जे फल का वारिका मानिये कल मेटयां इन प्रमामि के कलाइ मुगति पुरी साति रामनाम उबरइ प्रभात कान्हड़ चरिय जि नो नर मगह,एक विहित जि को भर सुबह तीरथ फल बोल्यं ये तर्दू पामा प्रश्य सवे वेतनुं (art-1५1 4००) इस प्रकार पूरा काव्य बार बडों में रखकर रमनाकार पदभमा ने कानाइदे के परित्र को धीरोदात नाव में अमूनपूर्व समकता से ऊंचा उठाया है। प्रत्येक वर्ग पारी कवि वर्ग की था की ओर स कर देता है। रक्षा में बरबी, कारखी वा पीडब्बों का या प्रयोग मिला है। वस्तुत पुरानी रावस्थानी अथवा मनी बरामी लिन रियों का प्रचार मिमिग विमान बाकीब बन रमायो पि वैशिष्ट्य स्पष्ट होगा। १५ भादी की गरमानों को महत्वपर्ष कमेन रमा मात्र कवि का वन-विकास- म समा प्रो. ज्यास ने बम्पादित करके प्रकाशित कर दी ME रनाओं में भारत का पि, पवन वर्गव, या ब विधान सेर -
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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