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________________ १५१ (१) माइभारती तमा पचाइ, अवरबंध इधि रस थाइ। (२) कन्हडचारिय जिको नर भण्ड, एक चिटित जिको नरसुणह। तीरथ फल बोल्य जैवठू पामइ पुश्य सेव तेत । (३५) कान्ये प्रबन्ध को प्रो. वी. व्यास मे सम्पादित तथा प्रकाशित किया है। पुस्तक माला के विद्वान सम्पादक मुनि जिन विजय जी ने इस ऐतिहासिक महागाव्य को प्राचीन राजस्थानी की सर्व श्रेष्ठ कृति कहा है। मुनि जिन विजय जी की की इस उक्ति से प्रस्तुत कृति के मामा और विक्य सम्बन्धी दोनों पदों की बहा स्पष्ट हो जाती है। हमने उपर प्रारम्भ में इस प्रबन्ध को राजस्थानी महाराध्य कहा है। उसके पीले दो अर्थ लक्षित है एक तो यह है कि इस काव्य में एक राजस्थानी बीर की पुनीत गाथा गाई गई है और दूसरा यह कि प्राचीन राजस्थानी की श्रेष्ठ कति है अतः विषय और भाषा दोनों दृष्टि से या काव्य राजस्थानी है। ५वीं वादी के पूर्व राजस्थान और गुजराती में जो एक ही पाषा मोठी जाती थी उसी का प्रतिनिधित्व यह रचना करती है। प्रस्तुत कान्हदे प्रबंध भाग तक गुजराती भाषा की सर्वमान्य एवं सर्वशमन कृति मानी जाती रही है। परन्तु श्री मुनिजिनविजय पी ने इसे प्राचीन राजस्थानी भाषा की ति सिदध कर १५वीं वादी पूर्व राजस्थानी और नी गुजराती ग म विच मितिमा देसिएका प्रबन्ध रावस्थाम पुरा नाम,Ne, प्रकाशक राजस्थान पुरातत्व मन्दिर, जापुर (रावस्याका । 1.(३) बास्ववियोगी बारा बनाएं, जिस समय मार्ग निर्षिय,समय राजस्थानी औरणरावी वा पापा व सबक कोई माम निधार नहीं बाबा रावस्थानी बार गुजराती ये नाम भूगों के शासन काल परिणाम मोपरगस इमूल युग में माहित्यिक, स्कृविकगमाजिक परावतिकवादि सर्व प्रकार की नृतम परिस्थितियों के स्वामिकबरार बराबस्थामनाम सेनाविध और प्रस्थापित होने वाले प्रदेशों३मिवासिनोपति , साहित्य, और भाषा इतिहासका अवलोकनौरमपी मिलेगमें भिन्न पावकेचबिकसिमोसा परबा बोरिया की परिस्थिति म अनिवार्य परिणाम (महा प्रस्तुबप्रवाचोरावस्थानीका काकाना बताई उसका कारण पाका बामिको नाकाकाशाबोराखीवभाग किरिया सिमानारे बरामी मावि , गुजराती
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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