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________________ १५० fagu तथा अनुरणनात्मक शब्द जयन काव्य की कलात्मकता के जाग उदाहरण 音 1 eferter वारसी पुजंगप्रयात आदि छन्दों का सकल निर्वाह है। रचना प्रकाशित है। का प्रबंध : प्राचीन राजस्थानी का एक उत्कृष्ट महाकाव्य कान्हड़ दे प्र है। इसके रवा कवि पद्मनाम है। यह रचना प्राचीन राजस्थानी भाषा का एक महाकाव्य है, जो अद्यावधि उपलब्ध रचनाओं में एक अपवाद है। क्योंकि जैन रचनाओं में एक बी कृति महाकाव्य के रूप में उपलब्ध नहीं होती। बजैन रचनाओं में इस महाकाव्य के कारण आदिकाल की समनता और भी स्पष्ट हो जाती है। पंडित कवि पद्मनाम का यह काव्य प्रबन्ध एक विबुध ऐतिहासिक काव्य है। इसमें वर्णित घटनाएं बहुत अंत्रों में इतिहास समर्थित है। प्रस्तुत प्रबन्ध का नायक कान्हड़दे है। स्वयं कवि भी कान्हड़ दे के नगर जालौर का रहने वाला था। कवि की इस रचना में प्रेरित करने वाला बहुजाण वीर राजवंश ही था जो कान्हड़दे से केवल वीं पीढ़ी में उसके राज्य सिंहासन का शायद अन्तिम उत्तराधिकारी था। इसका नाम अबराज सोनगरा था । कवि के अथकानुसार वह बड़ा धर्मात्मा, बदाबारी दानशील और ईश्वर भक्त था। उसके पर कवि ने प्रकाश डाला है: म राज उत्तम अवतार, बेडमा पुश्मन कामइ पार ates कीति का वि ज्ञात होता है कि कवि के कुल का सम्बन्ध विराज बराने के साथ दानुक्रम से बला जा रहा था और इसीलिए उसने अपने माधवदाता राजवंश के एक महान वीर की कीर्ति क्या इ उ और इतनी पागाई है। बील नगर नागर, ब्राहमण महाकवि पदुमनाम भारत का पुरातन को दुर्ग का सच्चा संरक्षक, उदात्त, राष्ट्रीय मार्थ राक था। उसकी कवि प्रतिभा ने जिस वह कविता का जन किया है यान्यवारों कवियों की लाच कविताओं से भी उम्न नाव वाली और है। कविकोपा
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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