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________________ ज्यों के मेद समय गए है। परन्तु आदिकालीन जैन रमाओं में काव्य रूपों की विशिष्ट परंपराए मिलती है। ये काव्य मद प्रधान प्रधान और विषय प्रधान दोनों ही प्रकार के है। इनमें एक ही काव्य म को सम्पन्न बनाने वाली कृतियां बहुत अच्छी संख्या में उपलब्ध हो जाती है। वास्तव में इन्ही जैन कृतियों के काव्य मों का प्रभाव हिन्दी साहित्य के परवर्तीकाल की काल की काव्य कृत्रियों और काव्यधाराओं पर अबेष्ट परिमाप में पड़ा है। इनमें प्रमुख काव्य प राम, काज, पपई, चर्चरी, प्रबन्ध, चरित, पवाड़ा, 'विवाहला, संधि, कक्क मातृका, तलहरा, बावनी समाय, गीत,स्तवन , कुलक, कलाबादि मिल जाते हैं। जिनका अध्ययन और भी विस्तार के साथ किया जासकता है। () या परंपराएं और क्या कृतियाँ: माविकालीम हिन्दी जैन साहित्य का इस दृष्टि में अध्ययन करने पर जो कि प्रत निबन्ध के अध्याय में किया गया है, ज्ञान होता है कि यह साहित्य इन दोनों विक्यों । अत्यन्त सम्पन्न है और इन विषयों में हिन्दी साहित्य की किसी भी धारा आदिकालीन हिन्दी साहित्य की यह धारा टक्कर ले सकती है। to-माविकालीन हिन्दी साहित्य में प्रय प्रस्तुत निबंध के अध्ययन का मा होगा कि आदिकालीन जैन हिन्दी कृतियों के दो का विशेष शिव है। इस प्रतियों के मात्रा और वाला दो प्रकार के वार्षिक का प्रयोग इन हिन्दी बैन कवियों में बहुत कम किया मग है। बालों और बाकि इत्तों में मीड और देशी दातों के माधार पर कुछ पौकियों का निर्माण किया है। विभिन्न मामा मातों की कुछ परियो मार से एक बनाने लिए इस साहित्य के जनबादी कवियों ने उनमें विकिन रामौकामावर नवेदों की इन्टि भी की है और माहिती सन्द मीमी अपना महत्वपूर्ण स्थान रखडे है। इन स्वनाओं प्रा और बम के परंपारितों के निवानि साथ बालिक देवी का प्रणयन शि है।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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