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________________ १०२२ (४) जयमंत्र का जैन साहित्यः प्रस्तुत निर्बंध के अपत्र जैन साहित्य विषयक चतुर्थ अध्याय से ज्ञात होगा कि पुरानी हिन्दी की साहित्यतथा भाषाविषयक पृष्ठ भूमि को समझने के लिए अपत्र की जैन रचनाओं का भी अध्ययन आवश्यक है। जैन के साहित्य के अध्ययन से हमें भाविकालीन हिन्दी जैन साहित्य तथा तर लौकिक के साहित्य के सम्यक अध्ययन में प्रचुर सहायता मिलती है। (५) आदिकालीन हिन्दी नेवर (लौकिक) साहित्य: आदिकालीन तर हिन्दी साहित्य से जिसका एक संक्षिप्त अध्ययन प्रस्तुत निबंध के पाचवे अध्याय में किया गया है। इससे जैन रचनाओं की भाषा, मान, कला तथा वस्तु विन्यास की सहज तुलना की जा सकती है। इस विना अध्ययन से यह भी ज्ञात हुआ होगा कि ईसाउली, कान्दे प्रबंध, भवन् विलास फा, ढोला मारूत दोहा, रणमल छन्द, स्वयवत्स वरित आदि अनेक कृतियों ऐसी हैं, जो काव्य की दृष्टि से अत्यन्त उत्कृष्ट है और जिनका यथेष्टअध्ययन हिन्दी के विद्वानों द्वारा अभी तक नहीं किया गया है और न जिन्हें हिन्दी साहित्य के इतिहास में उचित स्थान मिला है। (s) काव्य पर्वपरा आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्य के अध्ययन से, जो कि इस प्रबन्ध के अध्याय ६, ७, ८ तथा ९ में प्रस्तुत किया गया है। वह मती मावि ज्ञान हुआ डोगा कि यह साहित्य काव्यों के कहा जा सकता है कि काव्य का इति साहित्य में अन्य है, वरन किसी भी आधुनिक भारतीय भाषा के आदि के ग्राम में नहीं मिलता है। का है। सामान्य में रखकर ही में अत्यन्त समृद्ध है। बल्कि य ज्ञाना वैविध्य न केवल हिन्दी के हिन्दी में-काव्य का विस्तृत अध्ययन बिल्कुल नहीं हो काव्य स्मों का परिचय विदुवानों ने काव्य भेद को इष्टि है। अतः प्रायः प्रबन्ध काव्य, सडकाव्य, मुक्तक आदि ही काव्य
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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