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________________ १८१ थे अयं स रागेर गावत गीर गोविंदा- सून इसी बात की पुष्टि करता है। अत: देशी छंदों का यह क्रम जयदेव से प्रारम्भ होकर पुरानी हिन्दी प्राचीन राजस्थानी तथा भूमी, गुजगडी की रचनाओं में खूब मुखरित हुआ है। राजस्थानी में देशी डाले, तथा गुजरात की प्रसिद्ध गरबिया इस लय साल समन्वित छंदों के आधुनिक प्रतिनिधि स्वाम है। इन स्वमानों में प्रयुक्त कुछ प्रसिद्ध प्रकार के संवों में वैविध्य बहुत है।एक सबसे बड़ी विशेषता इन देशी दो इनकी गेयता है। गेयता के लिए कवियों ने ब के पी -एकार- और उकार का डूब प्रयोग किया है। अपर का देश रामक इन। दो का सुन्दर अन्य है तथा आदिकालिन इन कृडियों में परवींकाल में लिया गया औन अन्ध प्रवीराज रासो मी इन बाल इत्तों की भसार मिलती है। इन दों में उक्त वर्गीकरण के अनुसार लगभग सभी प्रकार के छंदों का परिषद विभिन्न अन्यों में विस्तार से मिल जाता है। इनमें समाविषदी मीषिया बारी एवं भूतणा, विन हिवदी गाथा, समन पदी में नाराब पादाकुलक, पकटिका चतुष्पदी, रासक अडिलल, सरस्वती, प्लवंग, रास,रोला, 'द्विवपदी,परस्टा , त्रिभंगी और इर्मिल,अधसम तुम्बबी में राम, दोहक, डणिका, सारसिका, विषम चतुष्पदी पिका, पंचपदी मामा, वादी, मष्टपदी या दिवमी मशः उपमावि, मा, पवन, दिवसीय प्रति है, जिनका शामिक वर्गीकरको मेलवकर में प्रस्तुत किया।' इस प्रकार स रकानों की पात्रिक, मिनबंध या बालास तथा वार्षिक और बेटी व प्रथम ना विपरिक्य प्रत्येक वादी की रचना के प्रागार पर ही विना साकार कुछ विशिष्ट कृतियों में प्रक्सी पिना बयान हो सकेगा। कृतियों यी वा तो परिवाth. - - अपयर गाली गाव मावान गाधी .॥
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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