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________________ १८० पौया की ही पाति चौपाई का एक उद्धरण उल्खनीय है:. ललित सवंग लता परिशीलन कोमल मलय समीरे मधुकर निकर करवितकोक्ति कृति का कुटीरे विहरति हरिरिह सरस वसन्त नृत्यति अवविजनेन मससि विरहि जनस्य दुरते । रवि सुख पारे गतमा भिसारे पदन मनोहर वैश्म न कुछ नितम्बिनि गमन विलम्बन अनुसर बहत्येम पीर समीरे यमुनातीरे वसस्ति ने वन माठी गोपी पीन पयोधर मर्दन चंचल कर युग शाली-२ इन पदों के अतिरिक्त पुरी हिन्दी में प्रयुक्त कई ईद जयदेव ने प्रक किए है,जो सब देशी गलों के । १२वीं वाही विभिन्न रागों में प्रयुक्त इन देशी छंदों का समानादि-कालीन जैन जैन दोनों कवियों पर अवश्य ही पड़ा होगा। संस्कृत में ये देशी व नहीं उपलब्ध होते जयदेव ने तो रागों में अष्टपतियां तक की अष्टपादिया संस्कृत में नहीं मिलती है। जयदेव के इन दो की प्रिय रामों के माम मी विभिन्न प्रदेशों के माप पर ही उदाहरवा- मोडकी,री, मालवगौड़, कीट, बर्मत, देशी बराडी, मैग्बी आदि। अबदेव इन वो का प्रभाव परवडी काल की रखनाओं पर खूब पड़ा है। इन आदि कालीम रचनाओं में देशी बों का खूब प्रयोग बयदेव की मीसिमिठास और देशी रागों चमत्कार के कारण ही दियागया होगा। देशी छंदों का यह प्रयोग भा गुजराती गरबी, परवो पी याप्त म मिल पाता है। हमारे मातोय काल की रसनामों को कईदा की रक्षा देशी बालों के आर पर ही मेने पीपीपी मोनिय नियमी रायों गाने के लिए ये व उपलब्ध -
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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