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________________ जीवनकी झांकी 'जीवनकी है अकथ कहानी ; है किन देखी; है किन जानी ? मधुर-मधुर अरु विपम-विपम-सी सरस - विरस अरु सुखद-दुखद भी ; सित-तम-पक्ष विलोके ना जी , निरखे नित ही वह मनमानी ; किन यह जानी प्रकृति निशानी ? किन यह जानी, किन यह मानी ?? नभमें तारा झिलमिल चमके ; चातक चन्द्र चाँदनी मोहे , रवि शिशु उपा-अंकमें सोहे , गंगकी धार वहे नित पानी ! किन यह ध्रुवलीला पहिचानी ? किन है जानी, किन है मानी ?? जल-बुद-बुद-सम विभव प्याली; क्यों पीवे तू यह मतवाली ? सुव न रहे वुव पिय विसरावे ! विरह विपय चहुँ गति अकुलानी !! - ६१ -
SR No.010025
Book TitleAadhunik Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRama Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
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