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________________ वीर-प्रोत्साहन अब उठो, उठो हे तरुण वीर , कर दो जगको तुम अभय वीर ! वह देखो, नव ऋतुराज साज, नव तरु विकसित पल्लव पराग ; जीवन-जागृति-ज्योती-अपार, चमके अव जगके द्वार द्वार ! अव जगो, जगो तुम धीर वीर ! प्राची दिशके तुम तेज राशि, भर दो जगमें तुम नव प्रकाश ; कर दो दुख वर्वरता विनाश, थिरके ज्यों घट-घटमें हुलास। ___अब बढ़ो, बढ़ो साहस गंभीर !' हे वीर-भूमिको सुसन्तान, हे चन्द्रगुप्त-गौरव-वितान; राणा प्रतापकी अतुल शान, वन जानो अब तुम विश्व-त्राण । अव हरो, हरो दुख दर्द पीर ! कर दृढ़ असि गहकर करुण वार, निर्वैर युद्ध कर क्षमाधार; आ गया शत्रु, अव देख द्वार, प्रलयंकर मद कर क्षार-क्षार । अव चलो, चलो तुम रण सुधीर ; अव उठो- उठो हे तरुण वीर ! - ६० -
SR No.010025
Book TitleAadhunik Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRama Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
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