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________________ श्री दलाल आप अमरावतीके निवासी हैं। वयोवृद्ध हैं। अमरावती (वरार), जहाँको खास भाषा मरहठी है और जहाँपर एक भी हिन्दी स्कूल नहीं था, वहाँ आपने प्रयत्न करके अनेक हिन्दी-स्कूल खुलवाये हैं । श्राप हेड-मास्टर थे और अव अवकाश ले लिया है। आपकी कविताएँ जैन-पत्रों में प्रकाशित होती रहती हैं। आप अपनी रचनाओंमें पारमार्थिक भावोंका बड़ी सुन्दरतासे आधुनिक शैलीमें दिग्दर्शन कराते हैं। मनकी बातें चिर दहता है चिन्तानलमें, दुख-सागरमें गोते खाता; इसकी साध न पूरी होती, रह-रहकर फिर-फिर अकुलाता ।१ व्यथित हृदयकी मर्म-वेदना सन्तापोंकी ज्वाल जलाती; खींच - खींचकर स्वरलहरीको उर - तन्त्रीके तार वजाती ।२ समझ-समझ पीडाको क्रीड़ा हो उन्मत्त उसे अपनाया ; कंटक-पथपर चलकर, रे मन, खोया बहुत न कुछ भी पाया ।३ - ४४ -
SR No.010025
Book TitleAadhunik Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRama Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
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