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________________ श्री सूर्यभानु डाँगी, 'भास्कर' डाँगी सूर्यभानुनी, बड़ी सादड़ी (मेवाड़) के रहनेवाले हैं। लगभग १०-१२ वर्ष कविताएँ लिख रहे हैं जो प्रायः पत्रोंमें प्रकाशित हुई हैं । आप पं० दरवारीलालनी 'सत्यभक्त' के सहयोगी हैं, और अपनी रचनात्रोंमें सत्यधर्मके सिद्धान्तोंका प्ररूपण करते हैं-जो धार्मिक कविताके लिए तदासे ही उपयुक्त विषय रहे हैं । आपकी कविताएँ बहुत सरस, भावपूर्ण और सङ्गीतमय होती हैं । विनय मम हृदय-कमल विकसित कर रे, यह विनय विमल उरमें घर रे ! दिनकर वनकर सघन गगनपर, रुचिकर मनहर अरुण वरण भर अन्तरम छिपकर अन्तरतर चमक चंचल चिरस्थिर रे | मम हृदय-कमल विकसित कर रे । स्नेह-मुवाका स्रोत वहा दे, शिव-सुखमय सुपमा सरता दे, लोल ललित लहरी लहरा दे, विप्लवमय जीवन नर् रे । एक भावना, मम हृदय-कमल विकसित कर रे । शत्रु - मित्रपर त्रिभुवनकी कल्याण कामना, 'सूर्यभानु' को यही प्रार्थना, वितरित करना घर-घर रे । मम हृदय-कमल विकसित कर रे । ४२ ト
SR No.010025
Book TitleAadhunik Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRama Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
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