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________________ क्षण भंगुर यौवन-श्रीपर यह इतराता है इतना कौन , रुप-रागिपर मोहित होकर शिशु-सम मचला करता कौन? बिन पर विश्व विपिनमें करता अरे कौन स्वच्छन्द विहार; वन सम्राट्, राज्य विन किसने कर रक्खा सवपर अधिकार ? रोकर कभी विहँसता है तो फिर चिन्तित हो जाता है; भाव-भङ्गिके नित गिरगिट-सम नाना रंग बदलता है ।' चित्र विचित्र बनाया करता विन रँग ही रह अन्तर्धान , किसने चित्र कलाका ऐसा पाया है अनुपम वरदान ? प्रिय मन, तेरी ही रहस्यमय यह सव अजव कहानी है , कर सकता जगतीपर केवल, मन, तू ही मनमानी है ! किन्तु वासनारत रहता ज्यो, त्यो यदि प्रभु चरणों में प्यार, करता, तो अब तक हो जाता भव-सागरसे वेड़ा पार । - ४१ -
SR No.010025
Book TitleAadhunik Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRama Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
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