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________________ पंडित चैनसुखदास, न्यायतीर्थ, कविरत्न एक साहित्यिकके नाते, पं० चैनसुखदासजीका स्थान जैनसमाजके विद्वानोंमें बहुत ऊँचा है । आप प्रतिभा सम्पन्न सफल कवि तो हैं ही; साहित्यके अन्य क्षेत्रोंपर भी श्रापका अधिकार है । गद्य-लेखक, गल्प-कार, सम्पादक और ओजस्वी वक्ताके रूपमें आपने साहित्य और समाजकी सेवा की है। इसके अतिरिक्त, आप स्वतन्त्र-विचारक और समाज-सुधार सम्वन्धी आन्दोलनोंमें प्रमुख भाग लेनेवाले कर्तव्य-निष्ठ नेता भी हैं। · पं० चैनसुखदासजी लगभग २५-३० वर्षसे साहित्यिक क्षेत्रमें आये हुए हैं । आप जब १५ वर्षके थे तभी उस समयको प्रमुख संस्कृत पत्रिका 'शारदा' में साहित्यिक लेख और सरस कविताएँ लिखा करते थे । संस्कृतकी पद्यरचना श्राप श्राशु कवि हैं। आपमें धाराप्रवाह रूपसे संस्कृत गद्य लिखने और वोलनेको क्षमता है । श्रापकी कविताओं में रस भी है और श्रोज भी । यह दार्शनिक तत्त्वको सुन्दर पदावलि द्वारा श्राकर्षक ढंगसे कहते हैं । तत्त्वकी गहनताको भाषाकी सरसता द्वारा सजाकर श्राप अपनी कवितामें रहस्यवादकी झलक ले नाते हैं, इससे कवितामें विशेष चमत्कार उत्पन्न हो जाता है । श्रापके संस्कृत ग्रन्थ 'भावनाविवेक' और 'पावन प्रवाह' प्रकाशित हो चुके हैं । श्राप भादवा ( भैंसलाना) के रहनेवाले हैं और श्राजकल जयपुरमें 'दिगम्बर जैन महा पाठशाला' के प्रधानाध्यापक हैं । ३१ Gy
SR No.010025
Book TitleAadhunik Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRama Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
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