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________________ बावू श्रीचन्द्र, एम० ए० बाबू श्रीचन्द्र जैन समथर राज्यान्तर्गत अम्मरगढ़ नामक. ग्रामके निवासी हैं। बचपनसे ही आपको कवितासे प्रेम है। आपको करुणरसप्रधान कविताएँ प्रिय हैं। श्रापकी अनेक कविताएँ जैन पत्रोंमें प्रकाशित होती रहती हैं। आप सुन्दर कहानियां भी लिखते हैं। कुछ लेख श्रापने 'जयपुर जैन-कवि' नामक शीर्षकसे लिखे हैं। आपकी कविताएँ मार्मिक और प्रसाद-गुगपूर्ण हैं । 'सामायिक पाठ'का आपने पद्यानुवाद किया है जो प्रकाशित हो चुका है। आपकी रचना 'चन्द्रशतक' प्रकाशित हो रही है। आपका कविता कहनेका ढंग बहुत सुन्दर है। गीत ये पागल मनकी आशाएँ; मेरी उत्कट अभिलाषाएँ। गिरि-शृंगोंपर सरस कमल हों, रस निकले रेणूके कणमें ; विह्वलतामें बसे सान्त्वना, हो प्रमोद जगके चिन्तनमें। यह क्षण-भंगुर जग निश्चल हो, राग वेदनाके स्वरमें हो; विभीषिकाकी रणस्थलीमें रंगभूमिका मृदुल सृजन हो। मानव मात्र देव बन जावें, सभी दीन वैभव-सुख पावें; हो ममत्व पाषाण-हृदयमें विषम गरल जीवन वन जावें । प्रस्थित यौवनके सौरभमें झंकृत अविनश्वर नित रव हो; लहरोंसे जग सागर तरना विह्वल मानवको सम्भव हो। ये पागल मनकी आशाएँ ; मेरी उत्कट अभिलापाएँ। - १६४ -
SR No.010025
Book TitleAadhunik Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRama Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
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