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________________ महाकवि तुलसी राघव पुनीत पद-पद्मका पुजारी वह भक्त मण्डलीका एक धीर वीर नेता था ; अटल प्रतिनामें था, अचल हिमाचल-सा जान-कर्म-भक्तिकी पवित्र नाव खेता था। अणु परमाणुषोंमें सारे विश्व मण्डलोंमें । रामका स्वल्प देख 'राम' नाम लेता था; हुलसी' का लाल हिन्द हिन्दी हियमाल वन राम-पद प्रीतिका मनोज जान देता था ।१ धन्य वह कंटकोंकी डाल अभिनन्दनीय विकसित होता जहाँ सुमन सहास है; संसृतिमें वन्य वह पतझड़वाला ऋतु जिसमें छिपा हुआ वसन्तका विलास है। नर देह नश्वर भी जगमें प्रशंसनीय क्रीड़ाका अनन्तकी वना जो अविवास है; दीनोंका दलित देग वन्य कहलाये क्यों न _ 'तुलसी'-सा रत्न जहाँ करता प्रकाग है ।२ कविवर, तेरी भारतीमें है अनोखी ज्योति होती ज्यों पुरानी त्यों नई-सी दिखलाती है; विश्वका रुदन और सृष्टिका विशद हास मृदुल ‘पदावली' तो स्वयं बताती है। , एक-एक छन्दसे है वसुवा सुवामयी-सी जीवन संगीतका अपूर्व गीत गाती है; अतएव मुग्ध होके आज कवि-मण्डली भी तुलसी पदोंमें प्रेम-अंजलि चढ़ाती है।३ - १५३ -
SR No.010025
Book TitleAadhunik Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRama Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
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