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________________ श्री हरीन्द्रभूषण जी, सागर श्री हरीन्द्रभूषणनी एक उदीयमान कवि हैं। यह गवर्नमेंट संस्कृत कॉलेनबनारसके साहित्यशास्त्री हैं और हिन्दीके अच्छे लेखक हैं। निवास-स्यान इनका सागर है और कुछ वर्ष तक ये स्याहाद महाविद्यालय तथा हिन्दू विश्वविद्यालय काशीके स्नातक भी रह चुके हैं। साहित्यको तरह समाज और राष्ट्र सेवासे भी प्रापको लगन है। । आपको कविता भावपूर्ण और भाषा प्राञ्जल है। वसन्त मैं समझ नहीं पाया अब तक ,. किस तरह मनाएँ हम वसन्त । अवखुला वदन अवनरा पेट , है कौन बड़ा यह कृषित काय । आंखोंने मोती छलक रहे , मैं समझ गया यह कृषक हाय । सर्दी गर्मीका नहीं भेद, अनसे जिसको है सदा काम । भरपेट अन्न उसको न मिले, जिससे पलती दुनिया तमाम । - १४० -
SR No.010025
Book TitleAadhunik Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRama Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
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