SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मेरे जीवनमें व्याज नहीं, मेरे जीवनमें साज नहीं, मेरे मस्तकपर ताज नहीं, मुझपर ही अपना राज नहीं, - मैं सदा निराश्रित, नियति-शास्ता-शासित तू इसमें लिख दे। सन्ताप-तप्त ये जलते क्षण, आक्रान्त व्यथित पृथ्वीके कण , दावानल दग्ध वृहत्तर वन , संकुल-व्याकुल खग-पशु जन गण , : ऐसे कितने आदर्श ढूंढ़कर पृष्ठभूमि निर्मित कर दे। . अगस्त यह 'दिन महान, स्मृतिपटपर अंकित निशान , मानस पीड़ाका मूर्त ज्ञान , भंकृत करता हृत्तन्त्रि तान , शंकित कम्पित निश्वस्त प्राण , हा आह गान । अन्वी रजनीका अन्वगान , स्वर्गगाका शुभ दीप-दान , नैराश्य प्रस्तका श्रान्त मान , * अन्तरका आशा ज्योति जान , संस्मृत स्वज्ञान। ~~ १४४ -
SR No.010025
Book TitleAadhunik Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRama Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy