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________________ श्री वालचन्द्र, 'विशारद श्री वालचन्द्रकी श्रायु अभी २० वर्षको है। कविता रचनेमें इनकी नैसर्गिक प्रवृत्ति है । मालूम होता है जीवनके विषादने इन्हें निराशावादी बनाया है। ये अपने श्रापको 'नियतिके हाथको गेंद' मानते हैं। वालचन्द्रजी कविता केवल 'स्वान्तः सुखाय' रचते हैं, और इसमें वास्तविक मानन्द अनुभव करते हैं। चित्रकारसे चित्रकार चित्रित कर दे। मेरा गिव औ' सत्य चित्र, सुन्दर पटपर अंकित कर दे। नैराश्य-सिन्धु यह अगम अतल , जीवन-नौका हो रही विचल , लहरें घातक, अतिशय हलचल , मन-माझी भी मेरा चंचल, मुग्व दुखकी विकट तरंगोंको तू उत्तालित दर्शित कर दे। मेरे जीवनमें प्रेम छिपा , अनुराग छिपा, सन्ताप छिपा, पीड़ाओंके उद्धार छिपे, हँसते-रोते उद्गार ' छिपे , कुछ हूक छिपी कुछ भूख छिपी, स्पष्ट प्राज सन्मुख रख दे। - १४३ -
SR No.010025
Book TitleAadhunik Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRama Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
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