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________________ श्री सुमेरचन्द्र, 'कौशल' श्री सुमेरचन्द्रजी वकील 'कोशल' सिवनीको प्रसिद्ध फ़र्म हुक्मचन्द कोमलचन्दके मालिक हैं । आपने अभी तीन वर्ष पूर्व वकालत प्रारम्भ की है | आपकी अभिरुचि वाल्यकालसे ही साहित्य, दर्शन और संगीतकी श्रोर विशेष रूपसे है । प्रापं लेख, कहानियाँ और कविता लिखा करते हैं जो जैन श्रजैन पत्रोंमें सम्मानके साथ प्रकाशित होती है । आप एक प्रभावशाली वक्ता श्रीर उत्साही सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं । श्रापकी कवितामें दार्शनिक पुट रहती है, फिर भी वह सुवोध श्रीर सुन्दर होती है । जीवन पहेली इस छोटेसे जीवनमें, कितनी आशाएँ वांधी; लघु-उरमें भावुकताकी आने दी भीषण आँधी । श्राशाका उड़नखटोला ऊंचा ही उड़ता जाता; क्या मृगतृष्णामें पड़कर, यह जीवन सुखी कहाता ? दुख सुखकी श्रखमिचौनी है सब संसार बनाये ; आशा तृष्णाके वग हो, जगतीमें पुरुष भ्रमाये 1 'जीवन है जब पहेली, क्या भेद समझमें श्राये; 'कोयल' ज्यों इसको खोलो, त्यों-त्यों यह उलझी जाये । १४१ •
SR No.010025
Book TitleAadhunik Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRama Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
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