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________________ पुनर्मिलन मेरी जीवन कुटियामें तुम एक बार फिर आना। जीवन - वमन्नमें मेरे जब छाई हो अरुणाई , कोकिलके पुलकित स्वरने हो प्रेम रागिनी गाई; जीवनके पुनर्मिलनमें मैंने तुझको पहचाना। मै मृदुल मालिनी भोली नू मन्त्र-मुग्य-सा योगी, तेरे वियोगमें मेरी अन्तर्बाला क्या होगी: म्वर क्षीण हुई वीणाकी तन्त्रीके तार जगाना। मेरे जीवन • उपवनमें जब मुरभित नुमन खिले हों, चिर-चिर अनन्तके पथमें कलियोंसे मयुप मिले हों: लहरोके फेनिल पयमें बस एक वार मुस्काना। हों चन्द्र देव, प्रिय रजनी ये निलमिल नमके तारे, मैं शून्य वासिनी जगकी ये ही हैं एक सहारे; सहना विलीन हो निमि फिर भूल मुझे मत जाना। मेरी जीवन कुटियामें तुम एक बार फिर पाना॥ . - १४० -
SR No.010025
Book TitleAadhunik Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRama Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
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