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________________ श्री ताराचन्द, 'मकरन्द' 'मकरन्द 'जीकी कविता प्रायः जैन-पत्रोंमें छपती रहती है । इनकी कविताएँ शैलीमें छायावादी ढंगकी होती हैं । जहाँ कविताओंका अभ्यन्तर कुछ स्पष्ट हो जाता है, वहां छायावादी शैली कवि और पाठक दोनोंके लिए बाधक हो उठती है । आशा है प्रगतिकी सीढ़ियोंपर दृढ़तासे पग रखते हुए 'मकरन्द' अभी श्रागे और बढ़ेंगे —— ठीक दिशामें । -- जीवन - घड़ियाँ ओ जाग, जाग सोनेवाले हो गया देख स्वर्णिम प्रभात जीवन-घड़ियाँ क्यों सोनेमें यों बिता रहा जब गई रात ? 1 सोते बदहोश तुम्हें मानव हैं बीत चुकी अगणित सदियाँ, क्यों अलसाये तुम पड़े हुए खो रहे आप अपनी निधियाँ ? मानस-तटपर यद्यपि तेरे आते हैं किरणोंके वितान, फिर भी तू सोता ही रहता आलसकी चद्दर तान-तान ! १३८
SR No.010025
Book TitleAadhunik Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRama Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
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