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________________ ___ जल रहे निखिल पुरजन-परिजन . विध्वंस - पिण्ड - ज्वालाओंमें। है चीख रही सारी जनता उन कोटि-कोटि मालाओंमें ।।. लुट गया आज माताओंका सौभाग्य, हुई सूनी गोदी। मानवने फिर संहार-हेतु वह एक नई खाई खोदी ॥ नर कहीं तरसते दानेको शिशु कहीं विलखते मात-हीन । झोंके जाते हैं कहीं वही स्फोटक - ज्वालानोंमें, कुलीन ॥ है वीर, विषमता यह कैसी कैसा यह अत्याचार-जाल । क्यों हुआ अचानक ही कैसा भीषण यह कुटिल कराल काल । आओ, फिर आओ, महावीर, __यह विषम परिस्थिति सुलझाओ । सत्पथसे भूली जनताको मङ्गलमय पथ दिखला जाओ ॥ - १३७ -
SR No.010025
Book TitleAadhunik Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRama Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
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