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________________ श्री घासीराम, 'चन्द्र' श्री घासीराम 'चन्द्र', नई सराय, लगभग १०-१२ वर्षते कविताएँ लिख रहे हैं । प्रारम्भमें आपने कवि-सम्मेलनोंके लिए समस्या पूर्ति करके कविता रचनेका अभ्यास किया । अव आप स्वतन्त्र विषयोंपर रचनाएँ करते हैं। आप भावोंकी सुकुमारताको अपेक्षा विषयको उपयोगिताकी और अधिक आकर्षित होते हैं । + फूलसे चार दिनकी चांदनी, फूल, क्योंकर फूलता है ? बैठकर सुखके हिंडोले, हाय, निश-दिन भूलता है ! श्रायगा जब मलय पावन, ले उड़ेगा सुख सुवासित ; हाथ मल रह जायेंगे माली, बनेगा गून्य उपवन । फिर बता इन क्षणिक जीवनमें, अरे, क्यों भूलता है ? कर रहा शृंगार नव-नव नित्य-नित्य राजा सजाकर ; गा रहा श्रानन्द बुरपद प्रेम-वीन वजा-बजाकर कालकी इसनें सदा रहती घरे प्रतिकूलता है ! आज तू सुकुमारतामें मग्न है निश-दिन निरन्तर ; एक क्षण-भरने, घरे, हो जायगा अति दीर्घ अन्तर | है यही जग-रीति क्षण-क्षण सूक्ष्म औ स्थूलता है । १३४ -
SR No.010025
Book TitleAadhunik Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRama Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
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