SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री अमृतलाल, 'चंचल' कवि और लेखक में 'चंचल'जी समाजमें सुपरिचित हैं। विद्यार्थी अवस्याले ही आपको साहित्यिक लगन है। जब आप ७-८ वर्ष पूर्व, हरदा कॉलेजमें पढ़ते थे, उसी समय आपने संस्कृतके सुप्रसिद्ध वर्मग्रन्य 'रलकरण्ड श्रावकाचार'का हिन्दी कवितामें अनुवाद किया था, जो प्रकाशित हो चुका है। आपको संस्कृत और हिन्दीका अच्छा ज्ञान है। उर्दू साहित्यसे भी रचि है। चंचलनीकी रचनाएँ अत्यन्त मयुर होती हैं। आप प्रकृति-शनते प्राप्त पाल्लादकी अभिव्यंजना सरल और स्वासाविक पदावलि द्वारा करते हैं। किन्तु पायियके वर्णननें भी, अपायिव तत्त्वकी ओर सरत करके चलते हैं। आपकी साहित्यिक प्रगति भूलने दार्शनिक संस्कृतिली याप है। अमर पिपासा कहाँ दौड़ रहा मृग - छान अत्रेत, अरे, यहाँ नीरकी आशा नहीं; मरुभूनिकी है मृग-वृष्णिका ये, यहाँ खेल तु प्राणता पाया नहीं। यहाँ लान्नों शहीद हुए कवि'चल', तू भी दिखा ये तमामा नहीं ; यहाँ जिन्दगीही जाती है, किन्तु कभी बुनती है पिपासा नहीं। - १०६ -
SR No.010025
Book TitleAadhunik Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRama Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy