SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुझे कहनेकी छूट दी जाय तो मैं तो इन्हें 'प्रकाश स्तम्भ' कहने में भी न सकुचाऊँगी । 'युगानुगामी' कवियों में हमारी समाजके अनेक मान्य विद्वान्, सम्पादक और विचारक है, जो हमारी प्राचीन संस्कृतिके संरक्षणमें लगे हुए हैं; और वे निस्सन्देह युगारम्भकी नई प्रेरणाको साहित्य और समाज-सुधारके क्षेत्र परीक्षणके द्वारा श्रागे ले जानेवाले हैं। इस समुदायके कवियोंकी कविताओं में यह वैशिष्ट्य है कि वे प्रधानतः धर्ममूलक, दार्शनिक या सुधारवादी हैं । कविताकी दृष्टिसे तीसरा परिच्छेद, 'प्रगति प्रवर्तक', विशेष महत्त्वका है | इसमें समाजके वह चुने हुए नवयुवक कवि हैं जो 'युग प्रवर्तक' से आगे बढ़ गये हैं और जिन्होंने हिन्दी कविताकी प्रचलित शैलियोंको अपनाकर कविताको भाव, भाषां और विपयकी दृष्टिसे प्रगतिकी श्रेणीमें ला दिया है । इनमेंसे अनेक कवियोंको हमारे साहित्यमें प्रगतिके महारथियोंके रूपमें स्मरण किया जायेगा, ऐसा मेरा विश्वास है । अव जो प्रगतिकी वारा वह रही है, उस प्रवाह में नये-नये कवि अपनी-अपनी प्रतिभा, रुचि और क्षमताके अनुसार अवगाहन कर रहे हैं । इस 'प्रगति - प्रवाह' में हमारे समाजकी सुकुमारमना कवियित्रियोंकी सरस भाव- ऊर्मियाँ तरंगित हो रही हैं; तरुण कवियोंकी 'गीति - हिलोर' नृत्य कर रही है; और अनेक छोटे-बड़े कवियोंके प्रयत्न-सीकर उल्लास से उछल रहे हैं । हमारे इन कवि कवियित्रियोंका श्राजके प्रगतिशील हिन्दी साहित्यमें - क्या स्थान है; यह प्रश्न करने और उसका उत्तर खोजनेका समय भी नहीं आया । यदि यह पुस्तक हमारे साहित्यिकोंकी विचारधाराको इस प्रश्नकी ओर उन्मुख कर सकी, और यदि हमारे कवियोंमें इस प्रश्नके समाधान करनेकी इच्छा जाग्रत हो सकी, तो में अपने इस प्रयत्नकी सफलतापर उचित गर्व अनुभव करूँगी । ११
SR No.010025
Book TitleAadhunik Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRama Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy