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________________ इस पुस्तकके लिए सामग्री एकत्रित करनेमें यद्यपि कई महीने लग गये, फिर भी अनेक ऐसे कवि रह गये हैं जिनके साथ पत्र द्वारा सुम्पर्क स्थापित नहीं हो सका ग्रथवा उचित सामग्री प्राप्त नहीं हुई । सङ्कलनका काम अपनी 'रुचि' के ग्रावारपर किया गया है, इसलिए उससे सवकिसीको सन्तोप होगा ऐसी कल्पना करनेके लिए कोई गुंजाइश नहीं है | हिन्दीके श्रावुनिक जैन कवियोंकी कविताओंका एक भी ऐसा संग्रह और सङ्कलन मुझे नहीं प्राप्त हो सका जिससे वर्गीकरणके लिए कुछ दिशा-निर्देश मिलता । शायद, ऐसी पुस्तक कोई प्रकाशित ही नहीं हुई । मैंने इस पुस्तकको मुख्यतः निम्न शीर्षकों में विभक्त किया है १. युग प्रवर्तक २. युगानुगामी ३. प्रगति - प्रेरक ४. प्रगति - प्रवाह ५. ऊर्मियाँ ६. गीति - हिलोर और ७. सीकर । पहले तीन शीर्षक कविप्रवान हैं, और शेष चारमें काव्य-धारा प्रवान है । फिर भी, कवियोंकी प्रधानता, विपयोंका सङ्कलन, सामग्रीकी उपलव्धिअनुपलब्धि और वर्तमान परिस्थितिमें पुस्तकके कलेवरको कम करनेकी आवश्यकता इत्यादि सव वातोंका खयाल रखनेके कारण वीच - वीचमें पुस्तककी योजना में छोटे-मोटे परिवर्तन करने पड़े हैं । 'युग प्रवर्तक' कवियोंके सम्वन्धमें इतना ही कहना है कि नये जागरण और सुधारके युगमें जिस विचार स्रोतको इन महान् आत्मानोंने समाजकी मरुभूमिकी ोर उन्मुख किया, उसने समाज - मनको नया जीवन और उसके साहित्यको नया स्वर दिया । वे वर्तमान युगके महारथी हैं, और १०
SR No.010025
Book TitleAadhunik Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRama Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
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