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________________ जागृति - गीत जाग जीवनके करुण, वह एक अद्भुत राग । 'बुन उठे ध्वनि सुन जगतकी चेतना उर मीन रह सके बैठी भले स्थिर तालपर यह तो न कर उठे सहना थिरकती एक ताण्डवनृत्य और यह हो जाय तत्क्षण वह प्रलय-सा कृत्य आप या वरदान प्रतिक्षण फूंकते हों प्राग । ग्रा भरे उत्साह तनमें और मनमें रोप टूट जाये ग्राज चिरको नीद आये होग देख लें दृग खोल अव क्या-क्या रहा है शेप प क्या है, दैन्य, बन्धन, श्रीर दारुण क्लेश 7 हूक कर ज्वाला मिटा दे यह अमिटसे दाग़ । फूँक दे वह प्राण मृत-सी देहमें श्रविराम स्वयं इस आरामका मनमें न लेवें नाम उठे जड़तामें निरन्तर भयानक तूफ़ान और पशुतासे पुरुष पा जाय यह परित्राण खेल ले निज शम्भु शोणितसे विहमि हँसि फाग ; जाग जीवनके करुण वह एक अश्रुत राग । परिवर्तनका दास से लिखा जा रहा प्रतिक्षण है इतिका इतिहास ; दुखमें झलक रहा है सुखका वह मादक मधुमास । १०३ -
SR No.010025
Book TitleAadhunik Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRama Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
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