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________________ अब कैसे निज गीत सुनाऊँ युग-युगका इतिहास व्यथित आँसूसे निर्मित एक कहानी, भग्न हृदय भी आज लिये है अपनेपनकी करुण निशानी । वृद्ध कण्ठकी स्वरलहरी, तव कैसे जीवन राग मुनाऊँ । अव० मुख दुखकी दुनियामेंएकाकी हसना रोना बाकी है।। उठ-उठकर गिरना गिरकर रोना, यह जीवन-झाँकी है ।। देख रहा संसार छलकते दृगसे कैसे अश्रु छिपाऊँ । अब कण-कणमे संघर्प, धधकतीचारों ओर समरकी ज्वाला । भूल गया मानव मानवता, सर्वनागकी पीकर हाला॥ वन्धु-बन्धुका ही घातक, तव किसको अपना मीत वनाऊँ । अव० भूमण्डल, अम्बर, जल, यलमें, हाहाकार सब तरफ़ छाया । अागान्वित अनन्त जीवनमें, कीन? प्रलय-सा भरता पाया। अरे, शून्य इङ्गित पथपर मैं अव कैसे निज पर बढ़ाऊँ । अब कैसे निज गीत सुनाऊँ । ___ - १०१ -
SR No.010025
Book TitleAadhunik Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRama Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
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