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________________ एक प्रश्न क्यों दुनिया दुखसे डरती है ? दुखमें ऐसी क्या पीड़ा है, जो उसकी दृढ़ता हरती है ? हैं कौन सगे, हैं कौन गैर, कितने, क्या हाथ बटाते हैं , सुखमें तो सब अपने ही हैं, दुखमें पहचाने जाते हैं, 'अपने' 'पर'की यह वात सदा दुखमें ही गले उतरती है , ___क्यों दुनिया दुखसे डरती है ? दुखमें ऐसा है महामन्त्र जो ला देता है सीधापन , सारे विकार सारे विरोध तज,प्राणी करता प्रभु-सुमिरन , हर साँस नाम प्रभुका लेती, भूले भी नहीं विसरती है , क्यों दुनिया दुःखसे डरती है ? दुनियावी सारे बड़े ऐव, दुखियाको नहीं सताते हैं, सुखमें डूबे इन्सानोंको वेशक हैवान बनाते हैं, दुख सिखलाती है मानवता, जो हित दुनियाका करती है , __ क्यों दुनिया दुखसे डरती है ? पतझड़के पीछे है वसन्त, रजनीके बाद सवेरा है , यह अटल नियम है उद्यमके उपरान्त सदैव बसेरा है , दुख जानेपर सुख पाएगा, सुख-दुख दोनोंकी धरती है , क्यों दुनिया दुखसे डरती है ?
SR No.010025
Book TitleAadhunik Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRama Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
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