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(३२)
नंदीश्वरव्रतकथा ॥ उत्तम सातवर्षविधिजान । मध्यमपांच तीन लघमान॥ उद्यापन विधिपूर्वक सचो। वेदी मध्य माडनारचा ॥५॥ जिनपूजारुमहाअभिषेक । चंद्रोपमध्वज कलश अनेक ॥ . छत्रचमरसिंहासनकरो । बहुविधिजिनपूजोअघहरो ॥२॥ चारोदान सुपात्रहि देउ । बहुत भक्तिकर विनय करेउ । बहुविधिजिनप्रभावनाहोइ । शक्तिसमानकरोभविलोय ५३ उद्यापन की शक्ति न होइ । तो दूनो व्रत कोजोलोइ ॥ जिनयहव्रतकीनोअभिराम । तिनपदलयोसुक्खकाधाम॥५४॥ यहवन पूर्वमहाफललियो । प्रथमऋषभजिनवरनेकियो । अनंतवीर्यअपराजितपाल । चक्रवर्तिपदवीभई हाल ॥५॥ श्रीपाल मैना सुंदरी। व्रत कर कुष्ट व्याधि सवहरी ॥ बहुतकनरनारीव्रतकरो। तिनसवअजरअमरपदधरो ॥५६॥ सना विधान राय हरिसेन । अति प्रमोद मुख जंपेबैन । संबपरिवारसहितव्रतलयो। मुनिवरधर्मप्रीतिकरदयो ॥५॥ व्रतकर फिर उद्यापन करो। धर्मध्यानकर शुभ पदधरी ॥ अंतसमाधिमरणकोपाय । भयो देव हरिसेन सुराय ॥८॥ पर्यायान्तर जैहे मुक्ति। श्रेणिक सुनी सकलवतयुक्ति ।। गौतमकहोसकलअधिकार । सुनामगधपतिचित्तउदार॥५॥ जो नर नारी यह व्रत करें। निश्चय स्वर्गमुक्तिपद धरें। संकट रोग शोकसबजाहिं । दुःख दरिद्रतादूरबिलाहिं ॥६॥ यह व्रत नंदीश्वर की कथा । हेमराज सु प्रकाशी यथा ॥ शहर इटावा उत्तम थान । श्रावक करेधर्मशुभध्यान ॥६॥ सुने सदा ये जैन पुराण । गुणी जनोंका राखें मान ॥ तिहिठा सुना धर्मसम्बन्ध। कीनीकथाचौपई बंध ॥२॥ कहें सुनें देखें उपदेश । लहें भाव से पुण्य अशेष ॥ जाकेनाम पापमिटिजांय । ताजिनवरकेवन्दोपांय ॥६॥
इति श्री नंदीश्वरव्रत कथा सम्पूर्णम् ॥