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________________ ( ३१ )। - नदीश्वरव्रतकथा ॥ आपाढकार्तिकअरुजोफाग । शाखातीनकरी अनुराग ॥ आठोदिनआठपर्यंत । भक्तिसहितकीजेवतसंत ॥ ३८॥ सातैको एकासन करो। कर संयम जिनवर मनधरो॥ आठेकेदिनकरउपवास । जासेछूटे कर्मका त्रास ॥ ३ ॥ करोप्रथमजिनकाअभिषेक । जातेपातिक जायंअनेक ॥ अष्ट प्रकारी पूजा करो । मुख परमेष्टि पंच उच्चरो ।।। तादिनव्रत नंदीश्वरनाम । ताकाफलसुनियो अभिराम ॥ फलउपवासलक्षदशान । श्रीजिनवरनेकरोबखान ॥४१॥ दूजे दिन जिन पूजा करो। पात्र दान दे पातिकहरो ॥ अष्टविभूतिनामदिनसाइ । तादिन एकासनकरलाइ ॥ २४ ॥ फलउपवाससहस्रदशहाइ । अयनीजोदिनसुनियेलोइ॥ जिनपूजाकरपात्रहिदान । भोजनपानीभात प्रमाण ।४३ ॥ नामत्रिलोक सारदिनकही। साठलाखमोषधफललहो॥ चतुर्थदिनकरआमौदर्य । नामचतुर्मुखदिनसीहर्य ॥ १४ ॥ तहांउपवासलक्षफलहोइ। पंचमदिनविधिकरियोसाइ॥ जिनपूजाएकासनकरो। हयलक्षणजुनामदिनधरो ॥४५॥ फलचौरासी लक्ष उपास । जासे जायभ्रमण भव त्रास ॥ षष्टम दिन जिनपूजादान । भोजनभातआमिलीपान॥६॥ तादिन नाम स्वर्गसोपान । व्रत चालीसलक्ष फलजान ॥ सप्तमदिनजिनपूजादान । कीजे पविजनकासन्मान ॥१७॥ सब सम्पत्तिनामदिन सोइ । भोजनभात त्रिवेलीहोइ॥ फलउपवासलक्षकोजान। अष्टमदिनव्रतचितमें आन ॥१८॥ कर उपवास कथा रुचि सुनो । पान दानदेसुकृत गुनो। इंद्रध्वजनतदिन तसनाम । सुमरोजिनवर आठोजाम ॥४॥ तीनकोड़अतलाखपचास । यह फल होइ हरेसबत्रास ॥ यहविधिआठवर्षमेंहोइ । भावसहितकीजेभविलोय ॥ ५० ॥ - - - -
SR No.010024
Book TitleJain Vrat Katha Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Jainilal Jain
PublisherLala Jainilal Jain Saharanpur
Publication Year
Total Pages39
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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