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________________ [ ३६ ] अच्छी तरह देखते थे। इसके बाद दिल्ली के निकट विहार करते हुए आ पहुंचे, जहां आचार्य देव की पधारने की खबर पाकर ठक्कुर लोहट साह, पाल्हण साह, कुलचन्द्र साह, महीचन्द्र साह, आदि संघ के मुख्य मुख्य आवक वन्दन नमन करने के लिये आये। इन लोगों को बड़े ठाट वाट से नगर के बाहर जाते हुए देख कर महल पर बैठे हुए दिल्ली नरेश मदन पाल ने मन्त्री से पूछा कि ये लोग कहां जा रहे हैं ? मन्त्री ने कहा, इन लोगों के गुरु देव आ रहे है, जिनके स्वागत में ये लोग जाते दिखाई पड़ते है। राजा ने यह सुनकर स्वयं भी जाने की अभिलाषा प्रकट की और अपने घोड़े को सजाने की आज्ञा दी। कम चारियों को भी साथ चलने की सूचना दी। फलतः बड़े साजवाज के साथ-- वीर सैनिक और प्रमुख लोगों के साथ राजा श्रावकों से भी पहिले ही आचार्य पाद की अगवानी मे दाखिल हुए। वहां गुरुवर के उपदेशों से राजा बहुत प्रसन्न हुए, और अपने नगर में जाने के लिये बहुत अनुरोध किया। पर आचार्य देव गुरु की बात स्मरण कर चुप रह गये। राजा ने कहा, महाराज क्या कारण है कि आप हमारे नगर में नहीं जाना चाहते ? श्रीमान् आप क्यों चुप रह गये ? क्या हमारा नगर जाने लायक ही नहीं है ? आचार्य देव ने कहा, नहीं, आपका नगर तो प्रधान धर्म क्षेत्र है। अन्ततोगत्वा दिल्लीपति के अनुरोध पूर्ण हठ से भवितव्यतावश गुरुवर को दिल्ली में जाना पड़ा। महाराज के प्रवेशोत्सव आश्चर्य जनक तरीके से मनाया गया, जो देखते ही बनता था। वहां इनके उपदेशामृत के पान से कितनों ने अपने जीवन को सफल बनाया। महाराज मदन पाल ने भी इनके उपदेशों से अच्छी तरह ज्ञान प्राप्त किया। एक दिन की बात है, अत्यन्त भक्त कुलचन्द श्रावक की दरिद्रता देखकर आचाय को बड़ी दया आई; फलतः इन्होंने मन्त्राक्षर सहित यन्त्र पट्ट उसको दिया और यन्त्र पट्ट की पूजा के लिये एक मुट्ठी वासक्षेप बतलाया। उस यन्त्र पट्ट की पूजा के प्रभाव से वह श्रावक कुछ ही दिनों मे बड़ा धनवान् हो गया। आपने अपने जीवन काल में एक मिथ्या दृष्टि देवता को प्रतिबोध देकर सम्यक्त दिया। इस भाति धर्म प्रभावना करते हुए आचार्य मणिधारी श्री जिनचन्द्र सूरि जी सं० १२२३ के दूसरे भाद्र पद वदि १४ को इस शरीर को छोड़कर स्वर्ग पधारे। स्वर्ग जाने के समय श्रावकों के सामने एक भविष्य वाणी की कि जितनी दूर शहर से बाहर हमारे शरीर का अग्नि संस्कार किया जायगा उतनी दूर तक शहर की आवादी बढ़ जायगी। लोगों ने भी उनकी आज्ञा के मुताविक ही विमान पर ले जाकर नगर की बहुत दूरी पर बड़े समारोह के साथ चन्दन कपूर वगैरह सुगन्धित पदार्थ के द्वारा अग्नि संस्कार सम्पादन किया। आश्विन मास पर्वाधिकार आसोज मास में आसोज सुदि ७ से आसोज सुदि पूर्णिमा नवपद् ओली तथा अष्टापद ओली विधि युक्त करनी चाहिये । इनकी विधियां पूर्व की तरह ही है। पाठक देख लेवें। अकबर प्रतिबोधक श्री जिनचन्द्र सूरीश्वरजी का आश्विन कृष्ण २ को स्वर्गवास हुआ है । अतः उनका संक्षिप्त जीवनचरित्र दिया गया है । मारवाड़ के जोधपुर राज्य में खेतसर नामक एक सुप्रसिद्ध ग्राम है। यह आज से लगभग सवा चार सौ वर्ष पहिले की बात है, ओसवाल जाति के रोहिड़ गोत्र में चमकते हीरे की तरह श्रीवन्त साह नामक एक सेठ थे। उन्हीं सेठ की पति परायणा श्रियादेवी के गर्भ से सम्बत् १५६५ की मिती चैत्र कृष्ण १२ के दिन शुभ लग्न में अत्यन्त सुन्दर एक पुत्र रत्न का जन्म हुआ। सेठ जी ने बड़ी उदारता से जन्मोत्सव मनाया एवं दशवें दिन गुरुजनी के द्वारा लड़के का नाम 'सुलतान कुमार' रखा गया। यह
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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