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________________ radhekarneshotsteaderkeelatastasterboasdobadasanamikskelessinahstetakisssssssssssashatak n katerialentinkal lrkinatantantrakakakakathakamanatantainkakukmikavikalaakstatekakkartakhtankatrinkinERFrkankikahaniantetapkotawitrinkikatak.intakmta kaiwakka स्तोत्र-विभाग ६५६ इयर सुरा वि हु सम्मं, जिणगणहर कहिय कारिस्स ॥२५॥ इय जो पढ़इ तिसंज्झं, दुस्सझं तरस गस्थि किंपिजए। जिणदत्ता णाय डिओ, सुणिट्ठि अट्ठो सुही होई ॥२६॥ श्री जिनदत्त सूरि कृतं गुरु पारतन्त्र्य नामकं पंचमं स्मरणम् मय रहियं गुण गण रयण, सायरं सायरं पणमिऊणं । सुगुरु जण पारतंतं, उवहिव्व थुणामि तं चेव ॥१॥ णिम्म हिय मोह जोहा, णिहय विगेहा पणढ़ संदेहा। पणयंगि वग्ग दाविअ, सुह संदोहा सगुण गेहा ॥२॥ पत्त सुजइत्त सोहा, समत्त परतित्थ जणिय संखोहा । पडिभग्ग मोह जोहा, दंसिय सुमहत्थ सत्योहा ॥३॥ परिहरिअ सत्त वाहा, हय दुह दाहा सिवंब तरु साहा । संपाविअ सुह लाहा, खीरोदहिणुव्व अग्गाहा ॥४॥ सुगुण जण जणिय पुज्जा, सज्जो णिरवज्ज गहिय पवजा। सिव सुह साहण सज्जा, भव गिरि गुरु चूरणे वज्जा ॥५॥ अज्ज सुहम्म प्पमुहा, गुण गण णिवहा सुरिंद विहिअ महा । ताण तिसंझं णाम, णामं ण पणासइ जियाणं ॥६॥ पडिवज्जिअ जिणदेवो, देवायरिओ दुरंत भवहारी। सिरिणेमि चंद में सूरी, उज्जोअण सूरिणो सुगुरु ॥७॥ सिरि बद्धमाण सूरी, पयडीकय सूरि । मत माहप्पो । पडिहय कसाय पसरो, सरय ससंकुच सुह जणओ ॥८॥ 3 सुह सील चोर चप्परण, पञ्चलो णिच्चलो जिण मयम्मि । जुगपवर सुद्ध सिद्धत, जाणओ पणय सुगुणजणो ॥९॥ पुरओ दुल्लह महिवल्लहस्स, अणहिल्लवाडए पयडं । मुक्कावि आरि ऊणं, सीहेणव दव्वलिंगि गया ॥१०॥ दसमच्छरेय णिसि विफ्फुरंत, सच्छंद सूरि मय तिमिरं । सूरेणव सूरिजिणे, सरण हय महिय दोसेणं ॥११॥ सुकइत्त पत्त कित्ती, पयडिअ गुत्ती पसंत सुह मुत्ती । पहय परबाइ दित्ती, जिणचंद जईसरो मंती ॥१२॥ पयडिअ णवंग सुत्तत्थ, रयणकोसो पणासिअ पओसो । भव भीय भविअ जण मण, है कय संतोषो विगय दोसो ॥१॥ जगपवरागम सार, प्परूवणा करण बंधुरी : धणिों । सिरी अभयदेवसूरी, मणि पवरो परम पसम धरी ॥१॥ कय : topattaraikirdabinakhhobiantakala.larkasbagilesgoatok-httrakhirthahistiablbhimla kala kpulatolankat in inlodhiarat Katrintmla train triantonthlata In eturinterstre r
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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