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________________ ط ط ط لا حر الجدل والفلفلل ول ده ا وا ا اااااااااااالالام ه जैन-रत्नसार सुअधम्मो, समग्ग भव्वंगि वग्ग कय सम्मो । गुणसुडिअस्स संघस्स, मंगलं सम्ममिह दिसउ ॥८॥ रम्मो चरित्तधम्मो, संपाविअ भव्य सत्त सिव सम्मो। णिसेस किलेसहरो, हवउ सया सयल संघस्स ॥९॥ गुण गण गुरुणो गुरुणो, सिव सुह मइणो कुणंतु तित्थस्स । सिरि वडमाण पहु पय,डिअस्स कुसलं समग्गरस ॥१०॥ जिय पडिवक्खा जक्खा, गोमुह मायंग गयमुह पमुक्खा । सिरि बंभ संति सहिआ, कय णय रक्खा सि दितु ॥११॥ अंबा पडिहय डिंबा, सिद्धा सिद्धाइआ पवयणस्स । चक्केसरि वइरुट्टा, संति सुरा दिसउ सुक्खाणि ॥१२॥ सोलस विज्जा देवीउ, दितु संघस्स मंगलं विउलं । अच्छुत्ता सहिआओ, विस्सुअ सुयदेवयाइ समं ॥१३॥ जिणसासण कय रक्खा, जक्खा चउवीस सासण सुरावि । सुहभावा संतावं, तित्थरस सया पणासंतु ॥१४॥ जिण पवयणम्मि णिरया, विरया कुपहाउ सव्वहा सचे । वेआवच्चकरावि अ, तित्थरस हवंतु संतिकरा ॥१५॥ जिण समय सिद्ध सुमग्ग, वहिय भव्वाण जणिय साहज्जो । गीयरई गीअजसो * सपरिवारो सुहं दिसउ ॥१६॥ गिहि गुत्त खित्त जल थल, वण पव्वयवासी देव देवीउ । जिण सासणट्ठिआणं, दुहाणि सव्वाणि णिहणंतु ॥१७॥ दस दिसिपाला सक्खित्तपालया, णवग्गहा स णक्खत्ता। जोइणि राहु ग्गह, काल के पास कुलिअद्ध पहरेहिं ॥१८॥ सहकाल कंटएहिं, सविट्टि वच्छेहि कालवेलाहिं । सव्वे सव्वत्थ सुह, दिसंतु सव्वस्स संघस्स ॥१९॥ भवणवई । वाणमंतर, जोइस वेमा णिआ य जे देवा । धरणिंद सक्क सहिआ, दलंतु * दुरियाई तित्थस्स ॥२०॥ चक्कं जस्स जलंतं, गच्छइ पुरओ पणा सिय तमोहं । तंतित्थस्स भगवओ, णमो णमो वढमाणस्स ॥२१॥ सो जयउ। जिणो वीरो, जस्सज्ज वि सासणं जए जयइ । सिद्धि पह सासणं, कुपह। णासणं सव्व भय महणं ॥२२॥ सिरि उसभसेण पमुहा, हय भय णिवहा दिसंतु तित्थस्स । सव्व जिणाणं गणहा,रिणोऽणहं वंछियं सव्वं ॥२३॥ सिरि वडमाण तित्था, हिवेण तित्थं समप्पियं जरस । सम्मं सुहम्म सामी, दिसउ । सुहं सयल संघरस ॥२४॥ पयईए भदिया जे, भदाणि दिसंतु सयल संघरस । वनप्राश्रममन्यप्राश्रममन्त्रस्य प्रप्रयणप्रन्प्रत्यय प्रस्नमत्रप्रनयन्त्रतत्रतत्र प्रजनननननननन्ययप्रय प्रजननननननननननन storisbaintritek Flviadrishad alrlookul nicekak wladkiokilaiakkeio kaLalakarketri skhooleralakaandikalakatinkalatakateshkokalatka r vaale' :------
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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