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________________ amarevgroserly runodafotoseutstabletstdabidesheelotectosdatabtobekshorasetootadakadeinessettesette ६२८ जैन-रत्नसार .wwwwwwwwwwwwwwwwww.. vvvvvvvvvvvvvvvvvvv अजित कुमार सहु गुणनी खाण ॥२॥ जसु इन्द्रादिक सेवा करे, इन्द्राणी उच्छव धरे । तीर्थकरनी पदवी लही, अन्तर अरि जिन साध्या सही ॥३॥ अनुक्रम इम भोगवतां भोग, पुण्य प्रसाद मिल्यो सहु जोग । अवसर दे संवत्सरी दान, संजम लीनो आप सुजांन ॥४॥ कर्म खपावी पाम्यो ज्ञान, | केवल दर्शन लह्यो प्रधान । विचरे पुहवी मंडल मांहि, भव्य जीव प्रति बोधन तांहि ॥५॥ सिंह सेनादिक गणधर भया, पंचाणवे संख्या सहु थया। एक लाख मुनिवर परिवरया, श्रावक श्रावकणी सहु करया ॥६॥ तीन लाख वलि तीस हजार, साधवियां जाणी सुविचार । श्रावक सहस अट्ठाणूं। सही, दोय लाख संख्या गह गही ॥७॥ पांच लाख पैंतालीस हजार, श्रावकणी संख्या सुविचार । बहुत्तर लाख पूरबनो आय, कंचनवरण शरीर सुहाय ॥८॥ साढ़े चार सै धनुष शरीर, मान लह्यो प्रभु गुण गंभीर । गज। लांछन प्रभुजी ने जांन, अमृत सम जसु मीठी वांन ॥९॥ अनुक्रम प्रभु जी शिखर समेत, गिरिवर पर आव्या निज हेत । सहस मुनिवरने परिवार, * मास खमण अणसण कर सार ॥१०॥ चैत्री सुदि पूनमने दिने, मुक्ति गया प्रभु तीरथ इणे । भूचर खेचर किन्नर सुरी, इन्द्रादिक सहु उच्छव। करी ॥११॥ थाप्यो तिण मोटो मही, अठाइ महोच्छव कियो सही। ए तीरथनी यात्रा करे, ते भवियण अक्षय सुख वरे ॥१२॥ ॥ दोहा ॥ श्री संभव जिनराज जी, गए इहां निर्वाण । शिखर समेत सुहामणो, प्रगट्यो तीरथ जाण ॥१॥ ॥ ढाल ॥ सावत्थी नगरी भरी, धन संपद बहु थोक । जितारि नृप राज करे, सुखिया सब लोक॥सेना राणी मीठी वाणी, गुणनी खान । जेहने सुत श्री संभव, जनम्या सकल सुजान ॥१॥ कंचन वरण शरीर, मनोहर प्रभुनो जांन । लंछन अश्व तणो सोहे, प्रभुनो परधान ॥ साठ लाख पूरबनो, प्रभुनो आयु प्रमाण । धनुष चार सै उच्च पणे, प्रभु देह वखाण ॥२॥ एकसौ दोय संख्या ए, प्रभुने गणधर होय । दोय लाख मुनि जेहने, गुण Besalkilindirls6ERGENERATAYAlaodesktakibilithimitalikaalaastati-lanakikalkatatashatst taksheetailokalkalanakaleshstiatohtoshootwostosantakmatkalaatasthilakshakakimamlaletastistatestantatisthataneodymistostaramanalisraelwosthulantavaasakahimlanatantantalapiptiminata.kelaloo kaales a testestabkaththalakatalestiatoublothiarlicationakaclinicipatelariatrimlakaana.vietalalamokalaman T E
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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