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________________ रास तथा सज्माय-विभाग AAAAAAAAAPoon संकरिये ए, निरमल नीरसं गात्र ॥१२॥ प्रथम आदीसर आगले ए, पुण्डरीक . गणधार । रायण तल पगला नमू ए, शान्तिनाथ सुखकार ॥१३॥ रायण तल पगला नमुं ए, चौमुख प्रतिमा चार । वीजी भूमि बिम्बावली ए, पुण्डरीक गणधार ॥१४॥ सूरज कुण्ड निहालिये ए, अति चली उलका झोल । चेलण तलाई सिद्ध शिला ए, अंग फरसूं उल्लोल ॥१५॥ आदि पुर पाजें उतरूं ए, सिद्ध व डलू विसराम। चैत्य प्रवाडी इण पर करी ए, सीधा वंछित काम ॥१६॥ यात्रा करी शत्रुञ्जय तणी ए, सफल कियो अवतार । कुशल क्षेम सं आवियो ए, संघ सहू परवार ॥१७॥ शत्रुञ्जय रास सोहामणो ए, सांभलज्यो सहु कोय । घर बैठां भणे भाव सं ए, तसु यात्रा फल होय ॥१८॥ संवत् सोल बयासिये ए, श्रावण वदि सुखकार । रास रच्यो शत्रुञ्जय तणो ए, नगर नागोर मझार ॥१९॥ गिरुवो गच्छ खरतर तणो ए, श्री जिनचन्द सूरीस । प्रथम शिष्य श्री पूजना ए, सकलचन्द सुजगीस ॥२०॥ तास सीस जग जाणिये ए, समय सुन्दर उवझाय । रास रच्यो तिण रूवडो । ए, सुणतां आनन्द थाय ॥२१॥ सम्मेत शिखरजी का रास ॥दोहा॥ वांदी वीस जिनेसरू, रचस्यूं रास रसाल। तीर्थ शिखर सम्मेतनी, महिमा बड़ी विशाल ॥१|| मोटो तीरथ महियले, प्रगट्यो शिखर समेत । कोड़ा कोड़ी मुनिवर्स, सिद्ध गए इह खेत ॥२॥ तीरथ शिखर समेत ए, फरस्या पाप पुलाय । भविजन भेटो भाव , ज्यूं सुख संपद थाय ||३|| महिमा शिखर समेतनी, कहि न सके कवि कोय । गुण अनन्य भगवंतना, तिम ए तीरथ होय ॥४॥ ॥ ढाल ॥ गिरिवर शिखर समो नहिं कोय, एहनी महिमा सब जग होय । बीस जिनेसर मुगते गया, मुनिजन ध्यान धरीने रह्या ॥१॥ प्रथम अयोध्या नगरी भली, तिहां जित शत्रु नरेसर वली । विजयारानीने सुत जांण, श, inthletsthit.Inte hainlelationshifalhoti.laturn inleletalhtntaintaintrinsiateletela ladalasir totalantathalmalattentiohintaintaineIII T hti.istatutat i st
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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