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________________ Asanlionsibicondinsinesinalinsahiran जैन-रत्नसार | जिनवि पीयूष, गाजंती धन मेघ जिम । जिनवाणी निसुणेवि, नाणी हुआ पंच सया ॥३०॥ वस्तु ॥ इण अनुक्रम इण अनुक्रम नाण संपन्न । पन्नरेसे परिवरिय, हरि दुरिय जिणनाह बंदइ ॥ जाणेवि जग गुरु वयण, तिहि नाण अप्पण निदइ । चरम जिनेसर इम भणे, गोयम मकरिस खेव, छेह जाय आपण सही होस्यां तुल्लावेव ॥३१॥भास॥ सामियो ए वीर जिनन्द,पूनमचंद जिम उल्लसिय। विहरियो ए भरहवासम्मि वरस बहुत्तर संवसिय ॥ ठवतो ए कणय पउमेण, पाय कमल संघे सहिय । आवियो ए नयणानन्द, नयर पावापुर सुरमहिय ॥३२॥ पेसियो ए गोयम सामि, देव समा प्रतिबोध करे । आपणो ए तिसला देवि, नंदन पहुतो परमपए ॥ बदतो ए देव आकाश, पेखवि जाण्यो जिण समो ए। तो मुनि ए मन विषवाद, नाद भेद जिम ऊपनो ए ॥३३॥ इण समे ए सामिय देखि आप कनासं टालियो ए। जाणतो ए तिहुअण नाह, लोक विवहार न पालियो ए ॥ अति भलो ए कीधलो सामि, जाण्यो केवल मांगसे ए। चिंतव्यो ए बालक जेम, अहवा केडे लागसे ए ॥३॥ हूं किम ए वीर जिनंद, भगतिहि भोले | भोलव्यो ए । आपणो ए ऊचलो नेह, नाह न संपे सांचव्यो ए ॥ साचो ए वीतराग, नेह न हेजेलालियो ए। तिणसम ए गोयम चित्त, राग वैरागें । वालियो ए ॥३५॥ आवतो ए जो उल्लट, रहितो रागे साहियो ए । केवल ए नाण उप्पन्न, गोयम सहिज उमाहियो ए ॥ तिहुअण ए जय जयकार, केवल महिमा सुर करे ए। गणधरु ए करय बखाण भविया भव जिम निस्तर ए ॥ ३६॥ वस्तु ॥ पढम गणहर पढम गणहर बरस पच्चास गिहवासे संवसिय । तीस बरस संयम विभूसिय, सिरि केवल नाण पुण ॥ बार बरस तिहुअण नमंसिय, राजगृही नयरी ठव्यो । बाणवाइ बरसाओ सामी गोयम गुण नीलो होसे शिवपुर ठाओ ॥३७॥ भास । जिम सहकारे कोयल टहुके जिम कुसुमावन परिमल महके । जिम चन्दन सोगंध निधि, जिम गंगाजल लहिरव्या लहके ॥ जिम कणयाचल तेजे झलके, तिम गोयम सोभाग निधि ॥३८॥ जिम मान सरोवर निवसे हंसा, जिम सुरतरु वर कणय । मनमनमनमनप्राणप्रत्रप्र नप्रजनन
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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